पटना : बिहार में भागलपुर के प्रसिद्ध जर्दालु आम को जीआइ टैग (विशिष्ट भौगोलिक पहचान) मिलने के साथ ही विदेश में मांग बढ़नेलगी है। स्वाद जुबान पर चढ़ने के बाद जर्दालु की दीवानगी ऐसी है कि आम तैयार होने से पहले ही कई देशों से आपूर्ति का अनुरोध आ रहा है। गत वर्ष जर्दालु आम की पहली खेप यूके (यूनाइटेड किंगडम) यानी ब्रिटेन भेजी गई थी। इस बार निर्यात का विस्तार हो रहा है। अबकी ब्रिटेन के साथ तीन देश और जुड़ गए हैं। श्रीलंका, दुबई और बांग्लादेश में भी इसे भेजा जाएगा। मांग आते ही केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर जानकारी दी। उन्होंने लिखा कि भागलपुर का जर्दालु आम ब्रिटेन तक पहुंचेगा।
अभी तक मांग के आधार पर पांच सौ क्विंटल आम के निर्यात की तैयारी है। मई के आखिर तक मांग और बढऩे की उम्मीद है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने इसकी सूचना दी है। इस बार भी एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) के माध्यम से इसकी खेप को लखनऊ के रास्ते पहुंचाने की पहल की जा रही है। निर्यात के लिए भागलपुर और बांका जिले के 27 किसानों ने निबंधन कराया है।
2018 में जर्दालु आम को मिला जीआइ टैग
विशिष्ट सुगंध और स्वाद के लिए भागलपुर के जर्दालु आम को 2018 में जीआइ टैग मिला था। जीआइ टैग उन उत्पादों के लिए दिया जाता है, जो एक खास भौगोलिक क्षेत्र में तैयार किए जाते हैं। जर्दालु समेत बिहार के चार कृषि व बागवानी उत्पादों को जीआइ टैग मिला हुआ है। इसमें मुजफ्फरपुर की शाही लीची, कतरनी चावल और मगही पान शामिल है। मिथिला के मखाना को भी जीआइ टैग मिलने की उम्मीद है।
जर्दालु आम पैदावार वाले प्रमुख जिले
भागलपुर, बांका, जमुई और मुंगेर जिले में मुख्य रूप से जर्दालु आम की बागवानी होती है। उत्तर बिहार में चंपारण में भी जर्दालु आम होता है, जिसका स्वाद और सुगंध लाजवाब है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष अभी तक 6052.79 टन जर्दालु आम के उत्पादन का अनुमान है। इसमें 33 सौ टन से अधिक भागलपुर और बांका जिले में उत्पादन का आकलन किया गया है। शीघ्र ही सीधे भागलपुर से ही निर्यात की तैयारी चल रही है। सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय केउद्यान विभाग के वरिष्ठ कृषि विज्ञानी डा. संजय सहाय के अनुसार किसानों की ज्यादा से ज्यादा आमदनी बढ़ाने के लिए इस वर्ष विवि कैंपस में पैक हाउस बनाने की प्रक्रिया शुरू कराने की तैयारी है। कृषि सचिव ने अनुमति दे दी है। निर्यात के लिए जरूरी फाइटोसेनेटरी सर्टिफिकेट की सुविधा राज्य सरकार की ओर से उपलब्ध हो गई है। इससे दूसरे राज्य की निर्भरता खत्म होने से बिहार में बागवानी को निर्यात के नए अवसर उत्पन्न होंगे।
क्या है फाइटोसेनेटरी सर्टिफिकेट
फाइटोसेनेटरी सर्टिफिकेट से तय होता है कि कृषि उत्पाद जिस देश में निर्यात किया जा रहा है वहां के लोगों की सेहत के लिए ठीक है। कोई हानिकारक कीट-बैक्टीरिया आदि नहीं है। पहले कृषि विभाग के पास यह अधिकार नहीं था। इस कारण बिहार के कृषि उत्पादों को बंगाल या महाराष्ट्र के उत्पाद के रूप में निर्यात किया जा रहा था। पटना में मीठापुर स्थित एआरआइ परिसर में निर्यात पैक बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई है।
स्वाद के कारण सर्वाधिक मांग
बिहार उद्यान निदेशक नंदकिशोर ने कहा कि बिहार भागलपुर के जर्दालु आम का स्वाद, मिठास और रंग अनूठा है। इस कारण सर्वाधिक मांग है। वाणिज्य मंत्रालय की एजेंसी एपीडा अपने पंजीकृत पैकहाउस केंद्रों द्वारा निर्यात में मदद कर रहा है। बिहार कृषि विवि के परिसर में भी पैक हाउस बनाने की तैयारी है। बिहार में कार्गो केंद्र का निर्माण भी प्रक्रियाधीन है।
Bureau Report
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