सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त चुनावी घोषणा मामले पर पुनर्विचार के लिए केस को तीन जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर विशेषज्ञ कमिटी का गठन करना सही होगा। लेकिन उससे पहले कई सवालों पर विचार करना जरूरी है। 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी फैसले की समीक्षा भी जरूरी है। हम यह मामला तीन जजों की विशेष बेंच को सौंप रहे हैं। अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चुनावी लोकतंत्र में असली ताकत मतदाताओं के पास होती है। वोटर ही पार्टियों और उम्मीदवारों का फैसला करते हैं।
इससे पहले SC ने सरकार को दिया था सर्वदलीय बैठक का सुझाव
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले सुझाव दिया था कि केंद्र मुफ्त उपहारों के पेशेवरों और विपक्षों पर चर्चा करने के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुला सकता है और यदि आवश्यक हो तो इसे कैसे रोक सकता है, इस पर निर्णय ले सकता है। वहीं राजनीतिक दलों ने फ्रीबीज के लिए नियामक तंत्र की जांच के लिए एक विशेषज्ञ पैनल गठित करने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का विरोध किया है। केवल अश्विनी उपाध्याय और केंद्र के नेतृत्व में रिट याचिकाकर्ता ही इस सुझाव से सहमत हैं।
चुनाव आयोग ने दी थी यह राय
इस याचिका पर अप्रैल में हुई सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त उपहार देना राजनीतिक दलों का नीतिगत फैसला है। वह राज्य की नीतियों और पार्टियों की ओर से लिए गए फैसलों को नियंत्रित नहीं कर सकता। आयोग ने कहा कि इस तरह की नीतियों का क्या नकारात्मक असर होता है? ये आर्थिक रूप से व्यवहारिक हैं या नहीं? ये फैसला करना वोटरों का काम है।
आयोग ने अपने हलफनामे में कहा था कि चुनाव से पहले या बाद में किसी भी मुफ्त सेवा की पेशकश/वितरण संबंधित पार्टी का एक नीतिगत निर्णय है और क्या ऐसी नीतियां आर्थिक रूप से व्यवहारिक हैं या राज्य के आर्थिक स्वास्थ्य पर इसका उल्टा असर पड़ता है, इस सवाल पर राज्य के मतदाताओं को विचार कर निर्णय लेना चाहिए।
चुनाव आयोग ने यह हलफनामा वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका के जवाब में दाखिल किया था। याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त का वादा या वितरण एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की जड़ों को हिलाता है। चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करता है। दलों पर शर्त लगाई जानी चाहिए कि वे सार्वजनिक कोष से चीजें मुफ्त देने का वादा या वितरण नहीं करेंगे।
Bureau Report
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