Rajasthan: सतीश पूनिया को फिर मिल सकती है राजस्थान भाजपा की कमान; OBC वोटर्स को साधने के लिए बनी यह रणनीति

Rajasthan: सतीश पूनिया को फिर मिल सकती है राजस्थान भाजपा की कमान; OBC वोटर्स को साधने के लिए बनी यह रणनीति

राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनिया को कार्यकाल में विस्तार मिल सकता है। उन्हें सितंबर 2019 में राजस्थान का अध्यक्ष बनाया गया था। इस प्रकार 2022 के अंत में ही उनका कार्यकाल पूरा हो चुका है। इसके बाद से ही राजस्थान अध्यक्ष पद को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन राज्य में इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी संगठन में कोई बड़ा बदलाव करने के मूड में नहीं है और यही कारण है कि ओबीसी नेता  सतीश पूनिया को अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल में विस्तार मिल सकता है। इसकी घोषणा पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद की जा सकती है। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक रहे सतीश पूनिया भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के काफी करीबी माने जाते हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का नजदीकी माना जाता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से होते हुए भाजपा की मुख्यधारा की राजनीति में आए सतीश पूनिया को लेकर संघ भी सकारात्मक है और यह बात उनके पक्ष में जाती है। 

राजस्थान में ओबीसी समुदाय का बड़ा वोट बैंक है। राज्य में ओबीसी कैटेगरी में लगभग 91 जातियां आती हैं जो राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 52 प्रतिशत वोट बैंक बनाती हैं। सतीश पूनिया स्वयं ओबीसी जाट समुदाय से आते हैं। उन्हें सेवा विस्तार मिलने से इस वोट बैंक को साधने में भी मदद मिल सकती है। उन्हें हटाने से ओबीसी समुदाय के बीच एक नकारात्मक संदेश जा सकता है जिसका खतरा पार्टी चुनावी साल में नहीं उठाना चाहेगी।

प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उनका कार्यकाल भी बेहतर रहा है। सतीश पूनिया के नेतृत्व में भाजपा ने कई राजनीतिक कार्यक्रम चलाए जो काफी सफल रहे। इस समय भी प्रदेश के हर जिलों में जन आक्रोश यात्रा निकाली जा रही है। यात्रा में कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी इस यात्रा में हर समुदाय के लोगों की भागीदारी होने से भाजपा मजबूत होती दिख रही है। वसुंधरा राजे सिंधिया जैसे कद्दावर नेताओं के होने के बाद भी पार्टी के अंदर गुटबंदी न होने देने को उनकी बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। 

संगठन का व्यक्ति होने के कारण भाजपा को पूनिया का लाभ मिलता दिख रहा है। अभी राज्य में विधानसभा के चुनाव साल के अंत में होने हैं, लेकिन पार्टी अभी ही 52 हजार बूथों में से लगभग 49 हजार बूथों पर अपना काम समाप्त कर चुकी है। सभी बूथों पर पन्ना प्रमुखों तक की जिम्मेदारी तय की जा चुकी है। विभिन्न चुनावों में पार्टी को इस रणनीति का लाभ मिलता रहा है। राजस्थान में भी उसे इसका लाभ मिल सकता है।

दूसरे राज्यों में में भी सफल रहे पूनिया

  • हाल ही में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में सतीश पूनिया को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्हें राजस्थान से सटे गुजरात के उत्तरी इलाकों में 43 विधानसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। राजस्थान भाजपा अध्यक्ष ने चुनाव से छह महीने पहले ही अपनी टीम लेकर इन इलाकों में काम किया और भाजपा को 33 सीटों पर जीत दिलाई। इस सफलता ने पार्टी में उनका ग्राफ ऊंचा किया है। 
  • इसके पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी उन्हें लगभग 90 सीटों पर पार्टी को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। किसान आंदोलन को लेकर सरकार के रुख के कारण इस चुनाव में जाट समुदाय के लोगों के बीच भाजपा को लेकर काफी नाराजगी होने की बात भी कही जा रही थी, लेकिन अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने जाट बहुल पश्चिम के इलाके में खूब मेहनत की। 
  • चुनाव परिणाम बताते हैं कि जाट नेता जयंत चौधरी के समाजवादी पार्टी के खेमे में होने के बाद भी भाजपा जाटों को साधने में सफल रही। इस बदलाव का बड़ा श्रेय सतीश पूनिया को जाता है। उन्हें दी गई 90 सीटों में से 80 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इससे भी उनका कद बढ़ा है। प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर दुबारा दावेदारी में उन्हें इस सफलता का भी लाभ मिल सकता है।

Bureau Report

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