हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि से बेदखली करने के मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकारी भूमि के मालिकाना हक का निपटारा केवल सिविल कोर्ट का अधिकार है। प्रतिकूल कब्जे का तर्क निपटाने के लिए राजस्व अधिकारी को सिविल कोर्ट में बदलना जरूरी है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया।
हमीरपुर निवासी अमीन चंद की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने तहसीलदार की ओर से पारित बेदखली आदेश को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने सरकारी भूमि पर प्रतिकूल कब्जे का तर्क देते हुए मालिकाना हक जताया था। इस मामले का निपटारा करते हुए तहसीलदार ने अपनी अदालत को सिविल अदालत के रूप में नहीं बदला था।
मामले के अनुसार 23 मार्च 2011 को तहसीलदार ने हिमाचल प्रदेश राजस्व अधिनियम की धारा 163 की कार्रवाई करते हुए सरकारी भूमि से बेदखली के आदेश पारित किए थे। याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित किए गए बेदखली आदेश अपीलीय और पुनरीक्षण प्राधिकरण ने बहाल रखे थे।
अंत में याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन पर पाया कि जहां पर सरकारी भूमि पर प्रतिकूल कब्जे का तर्क देते हुए मालिकाना हक जताया है, ऐसी स्थिति में मामला निपटाने के लिए राजस्व अधिकारी को सिविल कोर्ट में बदलना जरूरी है।
अदालत ने हिमाचल प्रदेश राजस्व अधिनियम की धारा 163 की उपधारा तीन से छह तक इसे जरूरी बनाया गया है। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने कारण बताओ नोटिस में स्पष्ट लिखा है कि वह प्रतिकूल कब्जे से सरकारी भूमि का मालिक बन गया है।
अदालत ने पाया कि अपीलीय और पुनरीक्षण प्राधिकरण ने भी याचिकाकर्ता के तर्क को कानूनी रूप से नहीं परखा है। अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ बेदखली आदेश को निरस्त कर दिया।
Bureau Report
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