Wrestlers Protest: जब नार्को टेस्ट ‘रामबाण’ नहीं तो कैसे माने पहलवान और बृजभूषण, क्या रिपोर्ट पर खत्म होगी बात

Wrestlers Protest: जब नार्को टेस्ट 'रामबाण' नहीं तो कैसे माने पहलवान और बृजभूषण, क्या रिपोर्ट पर खत्म होगी बात

दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहलवानों का धरना प्रदर्शन जारी है। कुश्ती खिलाड़ियों की एक ही मांग है कि भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहे बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार किया जाए। इस बीच बृजभूषण ने झूठ-सच का पता लगाने के लिए पहलवानों को नार्को टेस्ट कराने की चुनौती दे दी। पहलवानों ने भी उनकी चुनौती स्वीकार करते हुए कहा, वे नार्को टेस्ट के लिए तैयार हैं। हालांकि उन्होंने इस टेस्ट की प्रक्रिया को लाइव प्रसारित करने की मांग की है। पुलिस एक्सपर्ट और मनोचिकित्सक की मानें, तो नार्को टेस्ट की वैद्यता ही संदिग्ध है। सुप्रीम कोर्ट, इस टेस्ट के परीक्षण की वैधता पर सवाल उठा चुकी है। प्राथमिक साक्ष्य के तौर पर नार्को रिपोर्ट, अदालत में स्वीकार्य नहीं है। नार्को टेस्ट के जरिए सच बाहर लाना, इसमें 50-50 का चांस रहता है। दवा के प्रभाव से अगर कोई बात बाहर आती है, तो उसका सबूत भी जुटाना पड़ता है। ऐसे में नार्को टेस्ट, पहलवानों और बृजभूषण के बीच चल रही लड़ाई का अंतिम पड़ाव है, यह कहना जल्दबाजी होगा।

विशेषज्ञों की भी अलग-अलग राय संभव

दिल्ली पुलिस में स्पेशल सीपी रहे एवं गोवा के पूर्व डीजीपी डॉ. मुक्तेश चंद्र (आईपीएस) ने नार्को टेस्ट को लेकर कहा, यह साठ मिनट की प्रक्रिया, सच के करीब पहुंचने का एक प्रयास है। इसमें सफलता मिल भी सकती है और नहीं भी मिल सकती। टेस्ट की प्रक्रिया को लाइव नहीं दिखाया जाता। हालांकि उसकी वीडियोग्राफी होती है। यह सब कोर्ट पर निर्भर करता है। कोर्ट चाहे तो लाइव प्रक्रिया के बारे में कोई आदेश जारी कर सकता है। जांच रिपोर्ट को चैलेंज किया जा सकता है। बहुत से मामलों में ऐसा होता रहा है। इस टेस्ट प्रक्रिया में शामिल विशेषज्ञों की भी अलग-अलग राय संभव है। जिस व्यक्ति का टेस्ट होता है, उसे ‘सोडियम पेंटोथल’ दवा चढ़ाई जाती है। इसे व्यक्ति में चैतन्यता कम होती चली जाती है। सम्मोहक अवस्था में उस व्यक्ति से सवाल पूछे जाते हैं। दवा के प्रभाव से व्यक्ति में संकोच खत्म हो जाता है। ऐसे में वह व्यक्ति कुछ जानकारी दे सकता है। आमतौर पर सचेत अवस्था में वो जानकारी सामने नहीं आ पाती। व्यक्ति जब बड़बड़ाने लगता है, तो उससे सवाल किए जाते हैं। उस अवस्था में व्यक्ति के झूठ बोलने की संभावना बहुत कम हो जाती है। वजह, व्यक्ति कुछ छिपाने की स्थिति में नहीं रहता।  

नार्को टेस्ट, ये खुद में कोई सबूत नहीं

डॉ. मुक्तेश चंद्र ने बताया, ये नार्को टेस्ट खुद में कोई सबूत नहीं हैं। जैसे, दवा के प्रभाव से कोई व्यक्ति यह बता दे कि मैने फलां जगह पर हथियार छिपाया है और बाद पुलिस वहां पहुंचकर उसे बरामद कर ले, तो वह बात सबूत के तौर पर मान ली जाएगी। इस टेस्ट की प्रक्रिया आसान नहीं होती। जैसे किसी आरोपी से पूछा जाए कि आपने किसी लड़की को टच किया है, कहां टच किया है, आपने क्या किया था, ये सवाल ठीक लाइन लैंथ से पूछे जाने चाहिएं। लीडिंग सवाल करने से बचना चाहिए। इसका मतलब है कि किसी आरोप से यह नहीं पूछना चाहिए कि आपने तो रेप किया था। हां तुमने तो रेप किया है। इस तरह के सवालों का सहारा नहीं लेना चाहिए। जांच प्रक्रिया में यह बेहद सावधानी बरतने का विषय है कि वहां किस तरह के सवाल किए जाएं। संबंधित व्यक्ति के हेल्थ चेकअप के बाद ही उसे दी जाने वाली दवा की मात्रा तय होती है। अगर दवा की मात्रा ज्यादा हो गई तो वह बेहोश को सकता है। दवा की मात्रा कम हुई तो वह सोच समझकर जवाब दे सकता है। हालांकि दवा की मात्रा, मशीन से कंट्रोल होती है।

केवल सीन बनाने में मदद मिल सकती है

मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) के उप चिकित्सा अधीक्षक व मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टर ओम प्रकाश ने बताया, मैं व्यक्तिगत तौर पर इस टेस्ट का समर्थन नहीं करता। हालांकि सुरक्षा एजेंसियां, नार्को टेस्ट की हिमायती हैं। वे इसका इस्तेमाल भी करती हैं। करीब दो दर्जन नार्को टेस्ट की प्रक्रिया में बतौर विशेषज्ञ भाग ले चुके डॉ. ओमप्रकाश कहते हैं, ये टेस्ट अदालत में मान्य नहीं होता। इसे कराने के लिए आरोपी की सहमति भी लेनी होती है। साथ ही अदालत के आदेशों पर ही इसे किया जाता है। इस टेस्ट के जरिए सच बाहर आता है, ऐसा कुछ नहीं है। इसका एक फैक्ट चेक होता है। यह टेस्ट किसी मामले में पुलिस के पास मौजूद सबूतों की प्रमाणिकता जांचने में मदद देने के लिए है। नार्को टेस्ट की रिपोर्ट को फाइनल मानना गलत है। यह एक सप्लीमेंट्री एविडेंस होता है, प्राइमरी नहीं। चूंकि इस प्रक्रिया में ड्रग देकर सवाल पूछे जाते हैं, इसलिए उन जवाबों की अदालत में मान्यता नहीं होती। जब कोई व्यक्ति अचेत अवस्था में कुछ बोलता है तो उसे सीधे ही सच नहीं माना जा सकता। इसमें सच बाहर लाने में मदद मिलने की संभावना, 50-50 रहती है। क्राइम सीन बनाने में मदद मिल सकती है। बाद में आरोपी व्यक्ति भी कह सकता है कि नार्को टेस्ट मैं कैसे सही जवाब दे पाता, मैं तो सामान्य हालत में था ही नहीं। अब ये पुलिस पर निर्भर है कि वह नार्को टेस्ट की रिपोर्ट को केस की तह तक पहुंचने के लिए कैसे इस्तेमाल करती है।

50-50 पर चांस ले रहे हैं पहलवान और बृजभूषण

पहलवान और बृजभूषण सिंह, नार्को टेस्ट पर 50-50 का चांस ले रहे हैं। इस टेस्ट में सच बाहर निकलवाने का बड़ा दारोमदार, सवालों की सूची पर टिका रहता है। किससे कैसे सवाल किए जाते हैं, यह बात सच के करीब पहुंचने में पुल का कार्य करती है। अगर किसी से बहुत सामान्य सवाल किए जाएंगे तो जांच का नतीजा, निराशाजनक भी हो सकता है। पहलवानों को शक है कि इस जांच में बृजभूषण से सवालों को लेकर कोई खेल हो सकता है, इसलिए उन्होंने टेस्ट के लाइव प्रसारण की मांग की है। दूसरी ओर बृजभूषण शरण सिंह ने भी कह दिया कि जिन-जिन खिलाड़ियों ने आरोप लगाया है, वो नार्को टेस्ट के लिए अपना सहमति पत्र दें। मैं भी अपना सहमति पत्र भेज दूंगा। मैं हर तरह से तैयार हूं। मैं पीछे हटने वाला नहीं हूं। बृजभूषण सिंह ने कहा, ये खिलाड़ी चार महीने से लगातार बयान बदल रहे हैं, इसलिए इन खिलाड़ियों का भी नार्को टेस्ट होना चाहिए।

Bureau Report

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