S Jaishankar Iran Visit: मिडल-ईस्ट की अशांति पूरी दुनिया को परेशान कर रही है. एक तरफ गाजा में युद्ध छिड़ा है तो समुद्र में हूती विद्रोहियों ने आतंक मचा रखा है. लाल और अरब सागर में व्यापारिक जहाजों पर बार-बार हूती हमला कर रहे हैं. इतने तनाव के बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र और विदेश मंत्री एस जयशंकर एक-दो दिन में ईरान जाने वाले हैं. हाल के घटनाक्रम के बीच जयशंकर की यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण हो गई है. गुरुवार रात को दक्षिणी यमन में हूती ठिकानों को अमेरिका-ब्रिटेन ने निशाना बनाया है. देर रात, जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्ष एंटनी ब्लिंकन से भी बात हुई. मिडल ईस्ट के तनावपूर्ण हालात से दुनिया की अर्थव्यवस्था संकट में आ गई है. जयशंकर अपनी ईरान यात्रा के जरिए हालात सुधारने की कोशिश करेंगे.
जयशंकर पिछले दिनों पांच दिन के लिए रूस भी गए थे. वहां, मॉस्को में वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मिले थे. 10 जनवरी को जब पीएम मोदी ‘वाइब्रेंट गुजरात’ समिट से इतर UAE के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान से मिले, तब जयशंकर भी साथ थे. भारत लगातार सऊदी अरब, इजरायल जैसे मिडल ईस्ट के बड़े प्लेयर्स के संपर्क में रहा है.
ईरान को क्या समझाएंगे EAM
माना जा रहा है कि जयशंकर अपने ईरानी समकक्ष हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियां से मिलेंगे. वह राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से भी मुलाकात की कोशिश करेंगे. बातचीत का फोकस गाजा में बिगड़ती मानवीय स्थिति और व्यापारिक जहाजों पर हूती हमलों पर ही रहने की उम्मीद है. भारत ने पहले ही साफ कर दिया है कि फिलिस्तीनी संघर्ष के जरिए 7 अक्टूबर के नरसंहार को सही नहीं ठहराया जा सकता. ईरानी नेतृत्व के साथ बातचीत का असर हालात पर देखने को मिल सकता है क्योंकि हूती विद्रोहियों, हमास, हिजबुल्लाह और कातिब हिजबुल्लाह जैसी ताकतों के पीछे तेहरान ही है.
जयशंकर अपनी यात्रा में नॉर्थ-साउथ ट्रेड कॉरिडोर पर भी चर्चा कर सकते हैं जो ईरान में चाबहार पोर्ट से गुजरता है. भारत ने खुले तौर पर हूती हमलों का विरोध किया है. पांच-पांच युद्धपोत क्षेत्र में भेजे गए हैं. अदन की खाड़ी में सोमालियाई लुटेरों को भारत निशाना बना रहा है. भारत के लिए मिडल-ईस्ट में शांति अहम है क्योंकि वहां इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में उसकी महती भागीदारी है.
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