Rajasthan Exclusive: नगरीय निकायों के लिए सरकार का खजाना खाली, इमरजेंसी कामों के लिए भी फंड नहीं बचा

Rajasthan Exclusive: नगरीय निकायों के लिए सरकार का खजाना खाली, इमरजेंसी कामों के लिए भी फंड नहीं बचा

राजस्थान के विकास की राह को वित्तीय आपदा ने रोक दिया है। वित्त विभाग का नया आंतरिक आदेश कहता है कि नगरीय निकायों को इमरजेंसी काम भी करने हैं तो उसके लिए फंड की व्यवस्था उन्हें ही करनी होगी। लोकसभा चुनाव सिर पर है और उससे पहले वित्तीय आपदा भजनलाल शर्मा सरकार के सामने नई चुनौती बन गई है। वित्त विभाग के अफसरों ने राज्य और केंद्रीय वित्त आयोग से जो अनुदान मिला था, उन्हें दूसरे मदों में खर्च कर डाला। अब सरकार के सामने विकास कार्यों के साथ-साथ केंद्र और राज्य की योजनाओं का क्रियान्वयन ही बड़ी चुनौती है।   

वित्त विभाग के नए आंतरिक आदेश में विभागों के पुराने मरम्मत-रखरखाव के काम,केंद्र की शत-प्रतिशत सहायता वाली योजनाएं, शहरी निकायों और पंचायतों में स्वयं की आय से किए जाने वाले काम, विधायक निधि और डीएमएफटी के तहत होने वाले कामों को लेकर निर्देश जारी किए हैं।  

पैसे की कमी से सरकारी योजनाएं धराशायी
सरकार की योजनाएं पैसे की कमी से धरातल पर धराशायी हो गई हैं। योजनाओं की बात तो दूर मरम्मत-रखरखाव का खर्च उठाने के लिए भी फंड नहीं है। पंचायतों और शहरी निकायों ने सरकार से पैसे मांगे तो उन्हें अपनी आय से इमरजेंसी काम करने को कह दिया गया। हालात यह है कि अपना खर्च और जमीनी योजनाओं को चलाने के लिए इन ग्रामीण व शहरी स्वायत्त शासी संस्थाओं के पास खुद की आमदनी का कोई साधन नहीं है। राज्य और केंद्रीय वित्त आयोग की तरफ से इन्हें जो अनुदान दिया जाता है, वह राशि वित्त विभाग के अफसरों ने दूसरे मदों में खर्च कर डाली।

वित्त आयोगों का है बकाया
केंद्र और राज्य वित्त आयोगों को राज्य शासन की ओर से जो पैसा दिया जाना था, वह भी बकाया है। मौजूदा ही नहीं पिछले वर्ष की किश्तें भी बकाया हो गई हैं। राज्य वित्त आयोग का वित्त वर्ष 2022-23 का 600 करोड़ और वित्त वर्ष 2023-24 का 2800 करोड़ रुपये बकाया है। मनरेगा में सामग्री भुगतान के लिए वित्त वर्ष 2022-23 का 1000 करोड़ और वित्त वर्ष 2023-24 का 3000 करोड़ रुपये बकाया है। इसी तरह केंद्रीय वित्त आयोग का 2023-24 का 2900 करोड़ रुपये बकाया हो गया है। 

केंद्रीय योजनाओं से भी हाथ खींचे, सिर्फ 100% वाली ही चलेंगी
सिर्फ राज्य की योजनाओं का नहीं बल्कि केंद्रीय योजनाओं के लिए भी खजाना खाली पड़ा है। विभागों और निकायों को निर्देश दिए गए हैं कि जो योजनाएं 100 प्रतिशत केंद्रीय सहायता से चल रही है, सिर्फ उन्हें ही चलाया जाए। केंद्रीय योजनाओं की स्थिति यह है कि इस साल 35 हजार करोड़ रुपये इन योजनाओं के पेटे मिलना था जिसमें सरकार को उतनी ही राशि मिलानी थी। राज्य की ओर से दिए जाने वाले शेयर का पैसा भी इधर-उधर खर्च हो गया है। केंद्रीय योजनाओं से मिले 9500 करोड़ रुपये और 5000 करोड़ रुपये के मैचिंग शेयर का बड़ा हिस्सा समय पर विभागों को ट्रांसफर ही नहीं हुआ। इससे न सिर्फ अगली किश्तें रुक गई हैं, बल्कि देरी का ब्याज भी राजस्थान को भुगतना पड़ रहा है। 

केंद्रीय योजनाओं के बकाया 23 हजार करोड़ भी अटके
अलावा केंद्र सरकार की नियमों में यह भी है कि केंद्र सरकार के अंश व राज्य के अंश की 75% राशि खर्च होने पर ही अगली किश्त जारी की जाती है। केंद्र सरकार के अंश के रूप में राजस्थान को इस साल करीब 33 हजार करोड़ रुपये मिलने थे। पहले जारी हुई किश्तों को खर्च नहीं किया गया, जिससे अगली किश्तों पर भी रोक लगा दी गई है।

इन केंद्रीय सहायता प्राप्त योजना के पैसे अटके
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, नेशनल हेल्थ मिशन, मनरेगा, समग्र शिक्षा जैसी योजनाओं के पैसे अटक गए हैं। इन योजनाओं के लिए केंद्र सरकार से पैसे आते हैं। वित्त आयोग के अनुदान के 650 करोड़ रुपये भी पंचायतों को नहीं दिए गए हैं।

पंचायतों के काम ठप पड़े हैं 
राजस्थान सरपंच संघ के अध्यक्ष बंशीधर गड़वाल का कहना है कि वित्त विभाग को 15वें वित्त आयोग की 1350 करोड़ रुपये की ग्रांट आ चुकी है। इसके बाद भी पंचायतों को राशि नहीं दी गई। हमने कई बार सरकार को इसके लिए ज्ञापन भी दिए हैं। स्थानीय स्तर पर पंचायतों के काम ठप पड़े हैं। लागों में इस वजह से नाराजगी पनप रही है।

मुफ्त की रेवड़ियों का असर: भाजपा
भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ का कहना है कि पिछली सरकार ने मुफ्त की रेवड़ियां बांट कर अपनी चुनावी वैतरणी पार लगाने के प्रयास किए। इसी का परिणाम है कि आज वित्तीय सेहत गड़बड़ा गई है। इसके बाद भी हमारी सरकार जनकल्याण के कोई काम नहीं रोकेगी।

Bureau Report

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