बांग्लादेश में चीन अपना बड़ा मिसाइल बेस कैंप तैयार करना चाहता था। इसके लिए बाकायदा चीन ने बांग्लादेश सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना से वहां के सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह को लेने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा था। लेकिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चीन के उस बंदरगाह को लेने वाले खतरनाक मंसूबे को खारिज कर दिया था। दरअसल चीन बांग्लादेश के सबसे महत्वपूर्ण मोंगला बंदरगाह को लेकर वहां अपना मिसाइल बेस कैंप तैयार करना चाहता था। इस बेस कैंप के माध्यम से वह भारत पर 24 घंटे की निगाह रखने वाला था। केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक शेख हसीना ने चीन को जब यह प्रोजेक्ट नहीं दिया तो बीजिंग बांग्लादेश में माहौल खराब कर शेख हसीना को पद से हटाने की साजिश में शामिल हो गया। हालांकि भारत और बांग्लादेश के मजबूत रिश्तों के चलते इस बंदरगाह को चलने का जिम्मा चीन की बजाए भारत को मिला है।
बांग्लादेश में बिगड़े हालातों के लिए जिन देशों के ऊपर आरोप लग रहे हैं उनमें चीन भी प्रमुखता से शामिल है। लगातार केंद्रीय खुफिया एजेंसी को मिल रही रिपोर्ट से इस बात की पुष्टि हो रही है कि चीन ने बांग्लादेश में तमाम निवेश के बाद भी वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपदस्थ करने के लिए साजिशों का पूरा खाका तैयार किया। केंद्रीय खुफिया एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों के दौरान चीन और बांग्लादेश के रिश्ते इतनी मधुर नहीं रहे जितने की भारत के साथ होते गए। यही वजह रही की बांग्लादेश में अस्थिरता का माहौल पैदा करने और शेख हसीना को पद से हटाने के लिए लगातार साजिशें से होती रहीं। केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि दरअसल बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह को चलने का जिम्मा चीन लेना चाहता था। चीन ने इस बंदरगाह को लेने से पहले बांग्लादेश में कई तरह के भारी निवेश किए हुए थे। खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि इस बंदरगाह को लेकर चीन यहां पर अपने मिलिट्री बेस कैंप के साथ साथ “स्पेसिफिक मिसाइल बेस कैंप” तैयार करना चाहता था।
इस बंदरगाह को बांग्लादेश से लेकर चीन यहां के पूरे ऑपरेशन का प्रबंधन चाहता था। क्योंकि यह बंदरगाह न सिर्फ बांग्लादेश के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि चीन के लिए हिंद महासागर में जाने के लिए सबसे मुफीद और आसान रास्ता भी बनाता था। लेकिन चीन की इस हरकत का अंदाजा बांग्लादेश को हुआ तो प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चीन की इस ख्वाहिश को सिरे से ही खारिज कर दिया। इस बंदरगाह के न मिलने से जितना झटका चीन को लगा उससे ज्यादा बड़ा झटका उसको तब लगा जब इस बंदरगाह का पूरा प्रबंधन भारत को मिल गया। केंद्रीय खुफिया एजेंसी से जुड़े सूत्रों की माने तो चीन इस बंदरगाह पर अपनी नजर भारत में जासूसी करने के लिहाज से लगाए हुए था। केंद्रीय खुफिया एजेंसियों से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि जब यह बंदरगाह चीन को नहीं मिला तो उसने अंदर ही अंदर शेख हसीना के खिलाफ माहौल बनाने की तैयारी में शामिल हो गया। उक्त वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि इस बंदरगाह को देने के लिए बांग्लादेश की विपक्षी दल चीन के पक्ष में थे। यही वजह रही की जब बांग्लादेश में आरक्षण के लिए आंदोलन शुरू हुआ तो विपक्षी दलों और उनसे संबंधित संगठनों को चीन ने सपोर्ट करना शुरू किया।
सेंटर फॉर साउथ एशियन स्ट्रेटजी एंड प्लानिंग के कन्वीनर डॉक्टर ओमवीर छाबड़ा कहते हैं कि बांग्लादेश में जिस तरीके से चीन के भारी निवेश के बाद शेख हसीना का रुख भारत के लिए सॉफ्ट रहा, वहीं चीन को हमेशा से अखरता रहा। हालांकि उनका कहना है कि इसके बाद भी चीन ने बांग्लादेश में भारी निवेश किया हुआ था। चीन के सबसे बड़े प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में बांग्लादेश आज से 8 साल पहले ही शामिल हो चुका था। इस प्रोजेक्ट के चलते चीन ने बांग्लादेश के अलग-अलग हिस्सों में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर सेटअप का खाका दोनों देशों की सहमति के साथ तैयार किया था। छाबड़ा कहते हैं कि जहां पर मोंगला बंदरगाह बना हुआ है वहां पर भी चीन ने इंडस्ट्रियल पार्क के डेवलपमेंट के लिए बांग्लादेश को 300 मिलियन डॉलर की शुरुआती मदद देने का भी भरोसा दिया था। उनका कहना है कि चीन को इस बात का पूरा भरोसा था कि बांग्लादेश का झुकाव चीन की ओर तो है लेकिन भारत की और उससे ज्यादा है। इसीलिए चीन लगातार बांग्लादेश के भीतर न सिर्फ शेख हसीना बल्कि विपक्षी दलों को भी अपने साथ जोड़कर ऐसे तमाम प्रोजेक्ट के लिए सरकार पर दबाव भी डलवाता आया था।
दिल्ली विश्वविद्यालय में साउथ एशिया मामलों के विशेषज्ञ डॉ अभिषेक प्रताप सिंह कहते हैं कि चीन हमेशा से बंदरगाहों के माध्यम से समुद्र पर कब्जा करना चाहता है। क्योंकि चीन के पास अभी भी सीधे तौर पर हिंद महासागर में अपनी त्वरित और सीधी पहुंच नहीं है। यही वजह है कि चीन ने हाल में ही श्रीलंका के हमबनटोटा के प्रबंधन का भी काम श्रीलंका को बर्बाद और बदहाल कर ले लिया। डॉ अभिषेक कहते हैं कि चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर अफ्रीका के जिबूती बंदरगाह के लिए बड़ा निवेश भी किया है। वह कहते हैं कि एटलस ऑफ वर्ल्ड पोर्ट्स कांग्रेस की रिपोर्ट बताती है कि चीन की कंपनियां सबसे ज्यादा हिंद महासागर के किनारो पर बसे हुए मुल्कों के बंदरगाहों के निर्माण से लेकर उनके संचालन की तैयारी में है। इसमें से 21 बंदरगाहों में से 13 का निर्माण चीन की कंपनियां कर रही हैं। जबकि आठ बंदरगाहों में परिचालन की जिम्मेदारी चीन को मिली हुई है। इसमें कई बंदरगाह तो अरब देशों के भी हैं। डॉ अभिषेक कहते हैं कि चीन इसी मंशा के साथ बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह को लेने की फिराक में था कि वह यहां पर अपना अस्तित्व स्थापित कर सके और भारत पर खुफिया निगाह बना सके।
Bureau Report
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