दिल्ली में सियासी उठापटक जारी है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा देने का एलान कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से जल्द चुनाव कराने की मांग भी की है। ये तमाम घटनाक्रम अरविंद केजरीवाल के जेल से बाहर आने के बाद हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में जमानत दे दी है।
दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी और सौरभ भारद्वाज ने भी मांग की है कि राज्य में महाराष्ट्र के साथ चुनाव हों। उधर केजरीवाल के इस्तीफे के एलान के बाद सियासत भी तेज हो गई है। देश की सत्ताधारी भाजपा ने इसे ‘पीआर स्टंट’ करार दिया है। वहीं दिल्ली कांग्रेस ने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री के इस्तीफे की घोषणा को दिखावा बताया है।
आइये जानते हैं कि दिल्ली में अभी क्या हो रहा है? राज्य में जल्द चुनाव कराने को लेकर आप क्या कह रही है? क्या दिल्ली में महाराष्ट्र के साथ चुनाव हो सकते हैं? दिल्ली विधानसभा की स्थिति क्या है? चुनाव आयोग का रुख क्या हो सकता है?
दिल्ली में अभी क्या हो रहा है?
देश की राजधानी में सियासी उठापटक की शुरुआत बीते शुक्रवार (13 सितंबर) से होती है। दरअसल, दिल्ली आबकारी नीति मामले में गिरफ्तार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बड़ी राहत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सशर्त जमानत दे दी। केजरीवाल शुक्रवार शाम को तिहाड़ जेल से बाहर आ गए। जून के अंत में आप नेता को केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) ने गिरफ्तार किया था।
जेल से बाहर आने के बाद ही दिल्ली की सियासत गर्माने लगी। आप सुप्रीमो ने इसके बाद पार्टी के नेताओं से मुलाकात की। वहीं गत रविवार को केजरीवाल ने दिल्ली स्थित आप कार्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित किया। इसी दौरान केजरीवाल ने सीएम पद छोड़ने एलान कर सभी को चौंका दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह दो दिन बाद अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। आप नेता ने कहा कि जब तक लोग उन्हें ईमानदारी का प्रमाण-पत्र नहीं दे देते, तब तक वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। केजरीवाल ने कहा कि विधायक दल की बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें नए सीएम के नाम पर सहमति बनाई जाएगी।
जल्द चुनाव कराने को लेकर दिल्ली सरकार ने क्या कहा?
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने पद छोड़ने के एलान के साथ ही दिल्ली में समय से पहले चुनाव कराने की मांग की। केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के मुख्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, ‘हम चुनाव आयोग से दिल्ली में नवंबर में ही चुनाव कराने की मांग करेंगे।’
केजरीवाल के अलावा भी कई आप नेताओं ने राजधानी में समय से पहले चुनाव कराने की मांग की है। सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज ने दावा किया, ‘दिल्ली के लोगों के अंदर ऐसी बेसब्री है कि वह कह रहे हैं कि जल्दी चुनाव हों और हम आम आदमी पार्टी को वोट देकर को फिर से मुख्यमंत्री बनाएं।’
…तो क्या दिल्ली में जल्द चुनाव हो सकते हैं?
इस मसले को समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान के जानकार विराग गुप्ता से बात की। विराग कहते हैं, ‘कहा जा रहा है कि एक देश एक चुनाव का एजेंडा मोदी-3.0 के कार्यकाल में पूरा होगा। इसके लिए राज्यों के विधानसभा चुनावों के कैलेंडर को जोड़कर दुरुस्त करना पड़ेगा। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा-15 के अनुसार विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के 6 महीने के चुनाव आयोग विधानसभा के जल्द चुनाव कराने का निर्णय ले सकता है। महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव अक्तूबर 2019 और दिल्ली में विधानसभा के चुनाव फरवरी 2020 में हुए थे। इसलिए संवैधानिक तौर पर दोनों राज्यों में विधानसभा के चुनाव एक साथ हो सकते हैं।’
न्यूज एजेंसी पीटीआई ने एक विशेषज्ञ के हवाले से बताया कि दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 23 फरवरी को खत्म हो रहा है और फरवरी की शुरुआत में चुनाव होने की उम्मीद है। हालांकि, केजरीवाल ने रविवार को मांग की कि दिल्ली में महाराष्ट्र के साथ-साथ नवंबर में मतदान हो। महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को समाप्त हो रहा है। विशेषज्ञ ने कहा, ‘कानूनी तौर पर चुनाव आयोग के पास महाराष्ट्र के साथ-साथ दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराने की शक्ति है। लेकिन पिछले मौकों पर दिल्ली में चुनाव अलग से हुए थे। चुनाव आयोग के पास महाराष्ट्र और दिल्ली चुनावों को एक साथ कराने का एक कारण होना चाहिए।
समय पूर्व चुनाव कराने में किसकी क्या भूमिका?
विशेषज्ञ ने पीटीआई को बताया कि दिल्ली सरकार को चुनाव आयोग को जल्दी चुनाव की मांग करने के लिए आयोग को कारण बताना पड़ सकता है। संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के जानकार ने कहा कि सरकार को चुनाव आयोग को पत्र लिखना पड़ सकता है और आयोग को जल्दी चुनाव कराने की वजह बतानी पड़ सकती है। हालांकि, अंतिम निर्णय चुनाव आयोग ही लेगा।
चुनाव कराने से पहले चुनाव आयोग क्या-क्या करता है?
इस सवाल के जवाब में वकील विराग गुप्ता ने कहा कि विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले चुनाव कराने के लिए चुनी हुई राज्य सरकार के मंत्रिमंडल को विधानसभा भंग करने की सिफारिश करनी होती है। उसके अनुसार उपराज्यपाल विधानसभा को भंग करने और नये विधानसभा के गठन की प्रक्रिया की सिफारिश कर सकते हैं। उन सिफारिशों के अनुसार चुनाव आयोग विधानसभा चुनावों को जल्द कराने पर अपनी मोहर लगा सकता है। इसके लिए चुनाव आयोग को कई पहलुओं पर विचार करना होता है। नये वोटरों को शामिल करने के साथ वोटर लिस्ट का अपडेट, ईवीएम की उपलब्धता, त्योहारों के अनुसार प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस और पैरामिलेट्री फोर्स की उपलब्धता और जल्द चुनाव कराने से जुड़े आर्थिक पहलुओं के आंकलन के अनुसार चुनाव आयोग जल्द चुनाव कराने पर सहमति देता है।
वहीं एक विशेषज्ञ ने पीटीआई को बताया कि दिल्ली में मतदाता सूची 1 जनवरी 2025 को अपडेट की जाएगी जो उसकी क्वालीफाइंग तारीख है। जब मतदाता सूची अपडेट होती है, तभी नए पंजीकृत मतदाता अपना वोट डाल पाते हैं। विशेषज्ञ के अनुसार, इसलिए चुनाव आयोग दिल्ली में तय कार्यक्रम के अनुसार चुनाव कराना पसंद कर सकता है।
विधानसभा भंग नहीं की गई है लेकिन जल्द चुनाव की मांग हो रही है, क्या ऐसा संभव है?
दिल्ली में जल्द चुनाव कराने के साथ ही विभानसभा भंग करने को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी ने इस सवाल पर प्रतिक्रिया दी है। आतिशी ने कहा कि किसी भी विधानसभा का अगर छह महीने से कम का कार्यकाल रह जाता है तो केंद्र सरकार और चुनाव आयोग कभी भी चुनाव करवा सकता है। इसलिए दिल्ली विधानसभा को भंग करने की जरूरत नहीं है।
इस पहलू पर वकील विराग गुप्ता कहते हैं, ‘दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने त्यागपत्र देने की घोषणा की है लेकिन विधानसभा को भंग करने की सिफारिश अभी तक नहीं हुई है। दिल्ली में जल्द विधानसभा चुनाव कराने के लिए दिल्ली सरकार की सिफारिश, उपराज्यपाल की अनुशंसा और केंद्र सरकार की मंजूरी के साथ चुनाव आयोग की सहमति जरूरी है। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में वोटर लिस्ट के समरी रिवीजन पर चुनाव आयोग ने कई महीने पहले काम शुरु कर दिया है। लेकिन दिल्ली में यह प्रक्रिया पिछले महीने अगस्त से ही शुरू हुई है। इसलिए चुनावों की पूरी तैयारी के बाद ही चुनाव आयोग दिल्ली में विधानसभा चुनावों को जल्द कराने पर निर्णय ले सकता है।’
दिल्ली में अब आगे क्या होगा?
मंगलवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपना इस्तीफा देंगे। इसके बाद जब उनका इस्तीफा मंजूर हो जाएगा तब आप विधायक दल की बैठक होगी और उसमें नेता चुना जाएगा। इसके बाद विधायक दल का नेता उपराज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति को अपना दावा सौपेंगे और इसके बाद वह शपथ लेंगे। आप सरकार में मंत्री सौरभ ने कहा कि इस प्रक्रिया में एक हफ्ते का समय लग सकता है।
Bureau Report
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