G.O.A.T. Review: जरूरत से ज्यादा लंबी फिल्म में बेअसर रहा विजय का डबल रोल, हिंदी डबिंग की दिक्कतें सबसे ज्यादा

G.O.A.T. Review: जरूरत से ज्यादा लंबी फिल्म में बेअसर रहा विजय का डबल रोल, हिंदी डबिंग की दिक्कतें सबसे ज्यादा

हिंदी भाषी दर्शकों के लिए तमिल सिनेमा उनके उतना करीब नहीं है, जितना कि बरसों तक ठेठ मसाला हिंदी फिल्मों से भी मसालेदार फिल्में बनाता रहा तेलुगु सिनेमा है। विजय जोसफ को ‘दलपति’ विजय के नाम से हिंदी भाषी दर्शक पहचानते हैं, ये जाने बिना कि दलपति सिर्फ एक विशेषण है, नाम नहीं। थलाइवा और थलाइवर का फर्क भी शायद ही हिंदी सिनेमा देखने वाले जानते हों या जानना भी चाहते हों। विजय का इरादा जल्द ही तमिलनाडु की सियासत में कूदने का है। पार्टी वह बना चुके हैं। अगली फिल्म के बाद सिनेमा से संन्यास का फैसला भी वह बता चुके हैं। बतौर अभिनेता विजय की इस आखिरी से ठीक पहले की फिल्म यानी ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ को लेकर दर्शकों मे बेचैनी होनी स्वाभाविक है। लेकिन, एक दिक्कत यहां भी है और वह ये कि ये फिल्म बड़े मल्टीप्लेक्स में हिंदी में रिलीज नहीं हो रही है।

रॉ एजेंट की देखी-सुनी सी कहानी
हिंदी फिल्में प्रदर्शित करने वाले मल्टीप्लेक्स चाहते हैं कि किसी भी अभिनेता की फिल्म के सिनेमाघरों में रिलीज होने और ओटीटी पर आने के बीच कम से कम आठ हफ्ते का समय होना चाहिए। ऐसा फिल्म ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ के साथ नहीं हो रहा है। ओटीटी पर आने की ये जल्दी ही इस फिल्म में इसे बनाने वालों के दरके भरोसे की पहली निशानी है। कहानी फिल्म की कुछ कुछ वैसी ही है जैसी फिल्म ‘टाइगर 3’ में सलमान खान और उनके परिवार के साथ दर्शक देख चुके हैं। बस वहां टाइगर का बेटा बड़ा नहीं हुआ है। यहां भी रॉ की एक स्पेशल यूनिट सैट्स (स्पेशल एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड) का एक एजेंट गांधी आराम की जिंदगी जी रहा है। अतीत उसे वापस एक्शन में लाता है। और, इस यूनिवर्स की उसकी अपनी कुछ ऐसी बातें भी हैं, जिनके एक एक कर सामने आते रहने से फिल्म इंटरवल तक रफ्तार से भागती रहती है।

इंटरवल के बाद कमजोर पड़ी फिल्म
फिल्म ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ आल टाइम’ की असल कमजोरी इसका इंटरवल के बाद के हिस्से की पटकथा, इसमें ठूंसे गए अनावश्यक गाने और जरूरत से ज्यादा लंबी सड़कों पर पीछा करने वाले दृश्य (चेज सीक्वेंसेज) हैं। निर्देशक वेंकट प्रभु की ये फिल्म अभिनेता विजय की एटली के साथ बनते बनते बंद हो गई फिल्म के बाद शुरू हुई। दोनों की ट्यूनिंग पुरानी है और दोनों ने कहानी का मूल विचार लॉक करने के साथ ही तय कर लिया था कि ये फिल्म बनानी है। फिल्म बनानी है, इसके लिए वेंकट प्रभु ने एक कहानी लिखी। कुछ और लोगों को साथ जोड़कर इसकी पटकथा और संवाद पूरे किए। और, साथ में आए तमिल सिनेमा के चर्चित संगीतकार युवान शंकर राजा, सिनेमैटोग्राफर सिद्धार्थ नुनी और फिल्म संकलक वेंकन राजन। कोई तीन सौ करोड़ रुपये में बनी इस फिल्म ने इतनी रकम रिलीज से पहले ही सैटेलाइट और ओटीटी राइट्स से जुटा ली है। सिनेमाघरों से जो कुछ आने वाला वह सब मुनाफा है। विजय को दलपति नाम जैसा जंचने वाला सुपर सितारा बनाने की फिल्म में कोशिशें तमाम हैं। लेकिन, फिल्म के बाकी कलाकारों में नेहा से लेकर मीनाक्षी और प्रभुदेवा से लेकर योगी बाबू तक सब यहां उनके आभामंडल में छिपते-चमकते नक्षत्रों से ज्यादा कुछ नहीं हैं।

निर्देशन में निराश किया वेंकट प्रभु ने
निर्देशक वेंकट प्रभु से गलती फिल्म ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ में ये हुई है कि फिल्म को भव्य बनाने के चक्कर में वह विश्वभ्रमण पर तो निकल गए लेकिन जो घटनाएं यहां विदेश में दिखाई जा रही हैं, उनका कोई खास असर फिल्म का आकर्षण बढ़ाने पर पड़ता नहीं है। कहानी उन्हीं की है और इसमें मौलिकता सिर से गायब है। ‘बेटे को हाथ लगाने से पहले बाप से बात कर’ जैसा करंट भी इसके संवादों में नहीं है। एक जैसे दिखते बाप-बेटों की इस कहानी में एक्शन और गाने निकाल दिए जाएं तो फिर फिल्म में कुछ बचता नहीं है। एक्शन सीन जरूरत से ज्यादा लंबे होने के चक्कर में च्युइंग गम बन चुके हैं और गाने जैसे ही आते हैं, कहानी का प्रवाह खत्म कर देते हैं। फिल्म करीब तीन घंटे की है और सुनते हैं कि ये तब है जब इसका करीब 20 मिनट का हिस्सा फिल्म में ओटीटी रिलीज के समय जोड़े जाने के लिए बचा लिया गया है। तृषा और शिव कार्तिकेयन के स्पेशल अपीयरेंस का कोई फायदा नहीं होता। फिल्म में एआई के जरिये सीनियर कलाकार विजयकांत को भी लाया गया है। फिल्म की हिंदी डबिंग का अंदाजा इसके ट्रेलर से ही लग गया था और इस निराशा को दूर करने के लिए फिल्म में भी खास कुछ किया नहीं गया है।

‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’: बिल्कुल नहीं
इसमें कोई दो राय नहीं कि अभिनेता विजय (जोसफ) को तमिल सिनेमा में बड़ा स्थान हासिल है। उनके प्रशंसक अक्सर उनकी लोकप्रियता की तुलना रजनीकांत से करते रहे हैं, लेकिन रजनीकांत की जो फैन फॉलोइंग गैर तमिलभाषी दर्शकों में है, वहां तक पहुंचने के लिए निकलने में विजय को शायद देर हो चुकी है। तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे विजय की हर फिल्म अब उनकी सियासी तैयारी के नजरिये से ही देखी जानी है और ऐसे में फिल्म ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ में उनकी युवा भूमिका युवा दर्शकों को आकर्षित भी करती है, पर सीनियर एजेंट गांधी के किरदार में वह अपना उतना असर नहीं छोड़ पाते हैं। पटकथा, निर्देशन के बाद फिल्म की तीसरी सबसे कमजोर कड़ी है इसका संगीत, जिसका एक भी गाना फिल्म की गति को सहारा नहीं दे पाता है। खास विजय के प्रशंसकों के लिए ही बनी इस फिल्म का हिंदी पट्टी में भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं है। तमिल में भी रविवार तक के शुरुआती शोरगुल के बाद सोमवार से ये फिल्म असली कसौटी पर कसी जाएगी।

Bureau Report

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