बंगलूरू में एक इंजीनियर द्वारा पत्नी और ससुराल वालों की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या करने का मामला देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और अहम फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में किसी को दोषी ठहराने के लिए केवल उत्पीड़न करना ही पर्याप्त कारण नहीं है बल्कि इसके लिए स्पष्ट सबूत होने चाहिए। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने यह टिप्पणी, गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए की। इस याचिका में एक महिला को कथित रूप से परेशान करने और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के मामले में उसके पति और उसके सास-ससुर को आरोपमुक्त करने की मांग की थी।
पीठ ने कहा- आत्महत्या के लिए उकसाने के पर्याप्त सबूत नहीं
महिला की आत्महत्या के मामले में महिला के पति और उसके सास-ससुर के खिलाफ साल 2021 में भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए (विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसमें 10 साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। 10 दिसंबर को दिए अपने फैसले में पीठ ने कहा, ‘आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि के लिए यह एक स्थापित कानूनी सिद्धांत है कि दोषी का आत्महत्या को बढ़ावा देने का इरादा होना चाहिए और सिर्फ उत्पीड़न ही आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।’
सिर्फ अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए
पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में केवल अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता और इसके पुख्ता सबूत होने चाहिए। पीठ ने तीनों लोगों को धारा 306 के तहत आरोप से मुक्त कर दिया, लेकिन अदालत ने आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपीलकर्ताओं के खिलाफ आरोप को बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि महिला की शादी 2009 में हुई थी और शादी के पहले पांच साल तक दंपति को कोई बच्चा नहीं हुआ, जिसके कारण उसे कथित तौर पर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। पीठ ने आगे कहा कि अप्रैल 2021 में महिला के पिता को सूचना मिली कि उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 306 और 498-ए के तहत आरोप तय करने के सत्र न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा था।
पीठ ने कहा कि ‘आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि के लिए मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने की स्पष्ट मंशा स्थापित की जानी चाहिए। साथ ही प्रस्तुत साक्ष्य का आकलन करना चाहिए। यह निर्धारित करना जरूरी है कि पीड़ित पर की गई क्रूरता या उत्पीड़न ने उनके पास अपना जीवन समाप्त करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं छोड़ा।’ पीठ ने कहा कि महिला ने शादी के 12 साल बाद आत्महत्या की थी। पीठ ने कहा, ‘अपीलकर्ताओं का यह तर्क है कि मृतका ने शादी के बारह वर्षों में अपीलकर्ताओं के खिलाफ क्रूरता या उत्पीड़न की एक भी शिकायत नहीं की। पीठ ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, आईपीसी की धारा 306 के तहत अपीलकर्ताओं को आरोपमुक्त कर दिया। हालांकि, इसने धारा 498-ए के तहत आरोप को बरकरार रखा और कहा कि इस प्रावधान के तहत उनके खिलाफ मुकदमा चलेगा।
Bureau Report
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