लोकसभा में आज वक्फ संशोधन विधेयक पेश होगा: जेपीसी ने किन बदलावों को मंजूर किया, बिल में क्या-क्या नया? जानें

लोकसभा में आज वक्फ संशोधन विधेयक पेश होगा: जेपीसी ने किन बदलावों को मंजूर किया, बिल में क्या-क्या नया? जानें

केंद्र सरकार बुधवार (2 अप्रैल) को लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 पेश करने जा रही है। यूं तो केंद्र ने इस विधेयक को पिछले साल अगस्त को लोकसभा के सामने रखा था। हालांकि, बाद में सर्वसम्मति से इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया। जेपीसी ने करीब छह महीने तक विधेयक पर मिले संशोधन के सुझावों पर विचार किया और 27 जनवरी को इसे फिर से संसद में पेश करने की मंजूरी दे दी। एक महीने बाद ही केंद्रीय कैबिनेट ने भी इस विधेयक पर मुहर लगा दी।  

अब सरकार ने बजट सत्र के दूसरे चरण के आखिर में वक्फ संशोधन विधेयक को पेश करने का फैसला लिया है। इसके जरिए सरकार वक्फ कानून, 1995 में संशोधन करना चाहती है। फिलहाल इसी कानून के तहत देश में वक्फ की संपत्तियों का प्रबंधन होता है। हालांकि, सरकार अब वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को बेहतर ढंग से अंजाम देना चाहती है। साथ ही इनसे जुड़े विवादों को भी जल्द सुलझाना चाहती है। 

ऐसे में यह जानना अहम है कि जेपीसी में भेजे जाने के बाद से इस विधेयक को लेकर कितने संशोधन पेश हुए? इनमें कितनों को मंजूरी मिली? जेपीसी में राजनीतिक दलों के बीच क्या-क्या हुआ? जेपीसी से पास होने के बाद विधेयक में क्या बदलाव आया है? आइये जानते हैं… 

पहले जानें- केंद्र ने जेपीसी के पास क्यों भेजा था विधेयक?
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने 8 अगस्त को वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया। 40 से अधिक संशोधनों के साथ, वक्फ (संशोधन) विधेयक में मौजूदा वक्फ अधिनियम में कई भागों को खत्म करने का प्रस्ताव रखा गया। इसके अलावा, विधेयक में वर्तमान अधिनियम में दूरगामी परिवर्तन की बात कही गईृ। इसमें केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्ड में मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना भी शामिल है। इसके साथ ही किसी भी धर्म के लोग इसकी कमेटियों के सदस्य हो सकते हैं। अधिनियम में आखिरी बार 2013 में संशोधन किया गया था। विपक्षी दलों के विरोध के बीच सरकार ने गुरुवार को बिल संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की सिफारिश की गई। 

हालांकि, विपक्षी दलों द्वारा इस विधेयक में मौजूद प्रावधानों का विरोध करने के बाद सरकार ने इसे जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की बात कही। 

जेपीसी में इस विधेयक का क्या हुआ?

1. 572 संशोधनों के प्रस्ताव मिले, 14 को ही स्वीकारा गया
जेपीसी ने इस विधेयक पर करीब छह महीने तक विचार किया। बताया गया कि संसदीय समिति के सदस्यों ने कुल 572 संशोधनों का सुझाव दिया। इस जेपीसी के अध्यक्ष भाजपा नेता जगदंबिका पाल ने समिति की तरफ से प्रस्तावित संशोधनों की समेकित सूची भी जारी की। उन्होंने बताया कि खंडवार तरीके से हर संशोधन पर चर्चा हुई। 

जेपीसी की आखिरी बैठक 27 जनवरी को हुई। इसके बाद जगदंबिका पाल ने बताया था कि जिन संशोधनों को सरकार और विपक्ष की तरफ से पेश किया गया, उनमें से 44 संशोधनों पर गहराई से चर्चा हुई। पाल ने बताया कि हमने सभी सदस्यों से प्रस्तावित संशोधन मांगे थे। समिति ने 14 संशोधनों को बहुमत के आधार पर स्वीकार किया है। विपक्ष ने भी कुछ संशोधन सुझाए थे, लेकिन जब इन्हें लेकर मतदान कराया गया तो उन्हें बहुमत के आधार पर खारिज कर दिया गया।

उधर जेपीसी की सदस्य सांसद अपराजिता सारंगी ने कहा कि जेपीसी की बैठक पूरे लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हुईं। सभी को बोलने का मौका दिया गया। 108 घंटे विधेयक पर चर्चा हुई और 284 हितधारकों से बात की गई। समिति ने जिन संगठनों के लोग दिल्ली नहीं आ सके उनके सदस्यों से विभिन्न राज्यों में जाकर विधेयक पर चर्चा की। 

2. जेपीसी बैठकों में कैसे आमने-सामने रहे सत्तापक्ष और विपक्ष?
इस बीच जेपीसी की बैठकों में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तनातनी भी देखने को मिली। समिति की बैठक से तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी की तरफ से टेबल पर बोतल पटकने से लेकर सांसदों के हंगामा करने तक की खबरें सामने आईं। 

इन सबके बीच जनवरी में ही जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने 10 सांसदों को कमेटी की बैठक से पूरे दिन के लिए निलंबित भी किया। इनमें कल्याण बनर्जी, मोहम्मद जावेद, ए राजा, असदुद्दीन ओवैसी, नासिर हुसैन, मोहिबुल्लाह, एम अब्दुल्ला, अरविंद सावंत, नदीमुल हक, इमरान मसूद शामिल थे। 

निलंबित सांसदों ने इसके लोकसभा अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी और जेपीसी अध्यक्ष पर अपनी बातों को अनसुना करने के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि जेपीसी की 27वीं बैठक को रद्द करने की मांग भी की गई। लेकिन जगदंबिका पाल ने उसका जवाब तक नहीं दिया। इस दौरान द्रमुक सांसद ए. राजा ने मीडिया से कहा कि जेपीसी अध्यक्ष अपनी मनमानी चला रहे हैं। वहीं, कल्याण बनर्जी ने जगदंबिका पाल को कठपुतली तक बता दिया था। 

3. जेपीसी में बहुमत से पास कर दिया गया वक्फ संशोधन विधेयक
29 जनवरी को खबर आई कि संसदीय समिति ने वक्फ संशोधन विधेयक को 15-11 मतों के अंतर से मंजूरी दे दी। समिति ने वक्फ विधेयक की समीक्षा के बाद 655 पन्नों की रिपोर्ट जारी की गई। इसे बाद में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को सौंपा गया। समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा कि विधेयक में किए गए कई संशोधनों ने विपक्ष की चिंताओं का समाधान किया है। उनका कहना था कि जब यह विधेयक पारित होगा, तो वक्फ बोर्ड को अपने काम को पारदर्शी और प्रभावी तरीके से करने में मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी बताया कि इस विधेयक के तहत पहली बार पसमांदा मुसलमानों (जो पिछड़े वर्ग के हैं), गरीबों, महिलाओं और अनाथों को वक्फ के लाभार्थियों में शामिल किया गया है। 

हालांकि, मंजूरी मिलने के बाद विपक्षी सदस्यों ने इस विधेयक की आलोचना की है और इसे असंवैधानिक बताया। उनका कहना है कि यह विधेयक सरकार को मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार देता है, जिससे वक्फ बोर्ड का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

विपक्षी सांसदों ने इस प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक बताया। साथ ही आरोप लगाया कि उन्हें अंतिम रिपोर्ट का अध्ययन करने और अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए बहुत कम समय दिया गया। साथ ही विपक्षी दलों, जैसे कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी, आप और एआईएमआईएम के सांसदों ने विधेयक की तीखी आलोचना की। कुछ विपक्षी सांसदों ने अपनी असहमति दर्ज कराई है, जबकि अन्य ऐसा करने के लिए  शाम 4 बजे तक समय ले रहे थे। वे यह आरोप लगा रहे हैं कि 655 पन्नों की रिपोर्ट उन्हें बहुत कम समय में दी गई और इसे पढ़ने का समय नहीं मिला।

4. विधेयक में जेपीसी ने क्या महत्वपूर्ण बदलाव किए

(i). हर कोई अपनी संपत्ति ‘वक्फ’ नहीं कर सकेगा
विधेयक में एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि वक्फ द्वारा उपयोगकर्ता का खंड हटाया गया है, और यह साफ किया गया है कि वक्फ संपत्ति से संबंधित मामले अब पूर्वव्यापी तरीके से नहीं खोले जाएंगे, जब तक कि वे विवादित न हों या सरकारी संपत्ति न हों। इसके अलावा वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का समर्थन किया गया है, ताकि वे वक्फ मामलों में रुचि रखने वाले या विवादों में पक्षकार बन सकें।

(ii). वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम, महिला सदस्यों का नामांकन
विधेयक में वक्फ बोर्डों के संचालन में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जैसे कि अब बोर्ड में गैर-मुस्लिम और कम से कम दो महिला सदस्यों को नामित किया जाना प्रस्तावित है। इसके अलावा, केंद्रीय वक्फ परिषद में एक केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद, दो पूर्व न्यायाधीश, चार ‘राष्ट्रीय ख्याति’ के व्यक्ति और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी होंगे, जिनमें से कोई भी इस्लामी धर्म से संबंधित नहीं होगा।

(iii). सरकारी अधिकारी को जांच की शक्ति
बता दें कि अगस्त 2024 में जो विधेयक पेश किया गया था, उसमें वक्फ से जुड़े विवादों के मामलों में जिला कलेक्टर को जांच की शक्ति दी गई थी। हालांकि, जेपीसी ने जिला कलेक्टर वाली शक्ति को खत्म करने पर सहमति जता दी और राज्य सरकार को अब इन मामलों की जांच करने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी नामित करने का अधिकार देना प्रस्तावित कर दिया।

(iv). वक्फ संपत्ति का केंद्रीय डाटाबेस में पंजीकरण
विधेयक में मौजूदा कानून के तहत पंजीकृत हर वक्फ संपत्ति की जानकारी अधिनियम लागू होने के बाद छह महीने के अंदर सेंट्रल डाटाबेस में देना जरूरी है। इतना ही नहीं डाटाबेस में किसी भी सरकारी संपत्ति को जिलाधिकारी के पास चिह्नित किया जाएगा, जो कि बाद में इस मुद्दे पर जांच कर सकेंगे। विधेयक में शामिल इस संशोधन में कहा गया है कि अगर वक्फ संपत्ति को केंद्रीय पोर्टल में नहीं डाला जाता तो इससे वक्फ की जमीन पर अतिक्रमण होने या विवाद पैदा होने पर अदालत जाने का अधिकार खत्म हो जाएगा।

हालांकि, एक अन्य स्वीकृत संशोधन अब मुतवल्ली (कार्यवाहक) को राज्य में वक्फ न्यायाधिकरण की संतुष्टि बाद कुछ स्थितियों में पंजीकरण के लिए अवधि बढ़ाने का अधिकार देगा। 

(v). अंतिम नहीं होगा न्यायाधिकरण का फैसला
वक्फ कानून, 1995 के तहत वक्फ न्यायाधिकरण को सिविल कोर्ट की तरह काम करने की स्वतंत्रता दी गई थी। इसका फैसला अंतिम और सर्वमान्य माना जाता था। इन्हें किसी भी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी सकती थी। ऐसे में वक्फ न्यायाधिकरण की ताकत को सिविल अदालत से ऊपर माना जाता था। हालांकि, विधेयक में अब वक्फ न्यायाधिकरण के गठन के तरीके को भी बदला जा रहा है। इसमें कहा गया है कि वक्फ न्यायाधिकरण में एक जिला जज होगा और एक संयुक्त सचिव रैंक का राज्य सरकार का अधिकारी सदस्य के तौर पर जुड़ा होगा। वक्फ संशोधन विधेयक में कहा गया कि न्यायाधिकरण का फैसला अंतिम नहीं होगा और इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी।

Bureau Report

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