भाजपा की एक शीर्ष कमेटी ने स्वीकार किया है कि कांग्रेस के चुनावी दांव अब उस पर भारी पड़ रहे हैं। पुरानी पेंशन योजना, मुफ्त बिजली, बेरोजगारों के लिए बेरोजगारी भत्ता, गैस सिलेंडर के मूल्य कम करने और महिलाओं के लिए विशेष भत्ता देने के कांग्रेस के वादों ने भाजपा से न केवल हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों को छीना है, बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। कमेटी ने माना है कि यदि पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया तो उसे आगामी विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
पार्टी महासचिव बीएल संतोष और कर्नाटक प्रभारी अरुण सिंह के साथ हुई बैठक में भाजपा के शीर्ष नेताओं ने स्वीकार किया है कि कर्नाटक के उसके हाथ से फिसलने का एक बड़ा कारण कांग्रेस के द्वारा की गई घोषणाएं थीं। पार्टी उसकी कोई काट पेश नहीं कर सकी। इसके साथ ही नेताओं ने माना कि पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं में आपसी तालमेल की कमी पार्टी पर भारी पड़ी है।
भाजपा नेताओं ने यह बात ऐसे समय में स्वीकार की है जब उसके साथ-साथ सभी दल लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। भाजपा भी केंद्र में सत्ता के नौ साल पूरे होने का पूरे देश में उत्सव मनाने की तैयारी कर चुकी है।
युवा-महिला मतदाता महत्त्वपूर्ण
युवा और महिला मतदाता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता के सबसे बड़े कारण रहे हैं। उनका दावा रहा है कि उन्होंने इन दोनों वर्गों के लिए बहुत काम किया है। लेकिन केंद्र सरकार ने बेरोजगार युवाओं को भत्ता देने संबंधी कोई योजना राष्ट्रीय स्तर पर अब तक पेश नहीं की है। ऐसे में यदि कांग्रेस बेरोजगार युवाओं के लिए बेरोजगारी भत्ता जैसा कार्ड खेलती है, तो इसका उसे बड़ा लाभ मिल सकता है। विशेषकर कांग्रेस शासित राज्यों में यह दांव भाजपा से वोटर खींच सकता है।
इसी तरह महिलाओं को उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और राशन योजना का सीधा लाभ देकर प्रधानमंत्री मोदी ने इन्हें अपने साथ लाने में सफलता पाई है। लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक हर परिवार की महिला को भत्ता देने जैसी कोई योजना नहीं पेश की है। ऐसे में यदि कांग्रेस घर की महिलाओं के लिए आर्थिक मदद देने की कोई योजना पेश करती है, तो इसका व्यापक असर हो सकता है और यह दांव 2024 के चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाला हो सकता है।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि कर्नाटक में मिली जीत के बाद कांग्रेस में ऊर्जा दिखाई पड़ रही है। पार्टी इन राज्यों में मिली जीत के ‘फॉर्मूले’ को आगामी चार विधानसभा राज्यों और लोकसभा चुनावों में भी अवश्य आजमाएगी। पुरानी पेंशन स्कीम का मुद्दा सरकारी कर्मचारियों को प्रभावित कर सकता है, जो इस मामले को लेकर केंद्र से नाराज चल रहे हैं।
किसानों को सहायता देकर ही जीता था दिल
इसके पहले प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के रूप में किसानों को सीधी आर्थिक सहायता पहुंचाकर ही केंद्र ने किसानों की नाराजगी को कम करने में सफलता पाई थी। बदली चुनावी परिस्थितियों में बेरोजगार युवाओं और महिलाओं के लिए भी इस तरह की योजनाएं लाने पर केंद्र को विचार करना पड़ सकता है।
कांग्रेस ने अभी से दिखाए तेवर
इन योजनाओं को लेकर कांग्रेस की रणनीति अभी से साफ देखी जा सकती है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता कमलनाथ ने अभी से इन घोषणाओं को नए रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कांग्रेस सरकारों ने अभी से इन वर्गों को अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया है। ऐसे में इन राज्यों में कांग्रेस की योजनाओं की काट पेश किए बिना भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
भाजपा को लानी होंगी लोकप्रिय योजनाएं
भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक नेता ने अमर उजाला को बताया कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस की लोकप्रिय योजनाओं ने जनता के एक हिस्से को प्रभावित किया है। इसे देखते हुए पार्टी को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ सकता है। नेता के मुताबिक, अगले चुनावों को देखते हुए पार्टी नई रणनीति के साथ मैदान में उतर सकती है। हालांकि उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने भी महिलाओं-युवाओं और अन्य वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से इन वर्गों के लिए बहुत काम किया है और यही कारण है कि इन वर्गों का साथ पीएम को मिलता रहा है।
केवल घोषणाएं भाजपा की हार का कारण नहीं
राजनीतिक विश्लेषक परंजोय गुहा ठाकुरता ने अमर उजाला से कहा कि देश की आर्थिक तौर पर गरीब जनता को आर्थिक सहायता देने को वे फ्री-बी नहीं मानते। अपने कमजोर नागरिकों की सहायता करना हर सरकार का कर्तव्य है और इसे सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो भी राजनीतिक दल इसका वादा जनता से करते हैं, उन्हें इसका कुछ लाभ अवश्य मिलता है।
लेकिन हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कॉंग्रेस को मिली जीत को वे केवल इन योजनाओं तक सीमित नहीं रखना चाहते। उनका मानना है कि भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति से तंग आकर जनता एकजुट हुए जिसके कारण भाजपा सरकारों को हार का सामना करना पड़ा।
परंजोय गुहा ठाकुरता ने कहा कि कर्नाटक के चुनाव परिणाम बताते हैं कि भाजपा ने अपना वोटबैंक बरकरार रखा, लेकिन समाज के दूसरे दल उसकी नीतियों के विरुद्ध एकजुट हो गए और भाजपा की बेहद आक्रामक और खर्चीला चुनाव प्रचार किसी काम नहीं आया। हिमाचल प्रदेश में तो अल्पसंख्यक वर्ग न के बराबर है, लेकिन इसके बाद भी भाजपा ने उन्हीं मुद्दों को उठाया। इसका परिणाम उसे हार के रूप में देखना पड़ा।
Bureau Report
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