कर्नाटक में सरकार बदलने के साथ ही पिछली भाजपा सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को पलटने की कवायद शुरू हो गई है। महीना बीतते ही कांग्रेस सरकार ने पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा लाए गए धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने की न सिर्फ पूरी योजना बना ली है बल्कि कर्नाटक कैबिनेट ने इस पर मुहर भी लगा दी है। जल्दी ही इस प्रस्ताव को विधानसभा में लाया जाएगा। हालांकि, इस पर अब राजनीति भी शुरू हो गई है।
पहले जानते हैं कर्नाटक के धर्मांतरण विरोधी कानून के बारे में
पिछले साल भाजपा के नेतृत्व वाली बोम्मई सरकार कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून लाई थी। तब कांग्रेस और जेडीएस ने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए कानून का विरोध किया था। भाजपा सरकार ने विधानसभा से तो पिछले साल दिसंबर में ‘कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल’ पारित करा लिया था, लेकिन विधान परिषद में उस वक्त बहुमत न होने की वजह से यह बिल अटक गया। इस वजह से सरकार को विधेयक को प्रभाव में लाने के लिए मई में अध्यादेश लाना पड़ा था।
तब तत्कालीन गृह मंत्री ने तर्क दिया था कि राज्य में प्रलोभन देकर और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं आम हो गई हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ये कानून लाया गया है। उन्होंने यह भी कहा था कि यह विधेयक किसी की धार्मिक आजादी नहीं छीनता। कोई भी व्यक्ति अपने अनुसार धर्म चुन सकता है, लेकिन किसी दबाव अथवा प्रलोभन में नहीं।
इसके क्या प्रावधान क्या हैं?
पिछली सरकार के मुताबिक, यह अधिनियम धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा करता है। साथ ही गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करता है। इसके प्रावधानों का उल्लंघन संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है और इसमें सख्त सजा का भी प्रावधान है। इसके अतंर्गत 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन से पांच साल की कैद की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लोगों के संबंध में अपराधियों को तीन से 10 साल की कैद और 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
कानून को लेकर अभी क्या हुआ है?
दक्षिणी राज्य कर्नाटक में गुरुवार को सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला किया। बंगलुरु में आयोजित राज्य कैबिनेट की बैठक में इस पर मुहर लगा दी गई। फैसले के बारे में कानून एवं संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल ने कहा कि बैठक में भाजपा के समय लाए गए धर्मांतरण विरोधी कानून पर चर्चा हुई। इसे रद्द करने के लिए सरकार विधानसभा के आगामी सत्र में बिल लाएगी।
सरकार इसे क्यों खत्म कर रही है?
मई में कर्नाटक में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस ने पिछली भाजपा सरकार की नीतियों, विधेयकों और धर्मांतरण विरोधी, पशु वध विरोधी और हिजाब प्रतिबंध कानूनों सहित कार्यकारी आदेशों पर फिर से विचार करने का एलान किया था। सरकार के मंत्री प्रियंक खरगे ने 24 मई को इस बारे में ट्वीट कर जानकारी भी दी थी। अब सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार ने कहा कि वह आगामी विधानसभा सत्र में इस संबंध में एक विधेयक पेश करेगी। बता दें कि विधानसभा सत्र तीन जुलाई से शुरू होगा।
बीजेपी क्या कह रही है?
कानून खत्म करने के एलान के साथ ही बीजेपी ने कांग्रेस पर जुबानी हमले करने शुरू कर दिए। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा, ‘धर्मांतरण ने हमारे समाज की नाक में दम कर रखा था। ऐसे धर्मांतरण विरोधी विधेयक को रद्द करने का फैसला करके सरकार किसे खुश करने चाहती है? ऐसा लगता है कि हाईकमान की दया पर राज्य पर शासन करने वाले सिद्धारमैया प्रदेशवासियों के हितों को खतरे में डाल रहे हैं।’
वहीं, भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बसनगौड़ा आर पाटिल ने एक ट्वीट में कहा, ‘क्या यही मोहब्बत की दुकान है? उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का हिंदू विरोधी एजेंडा उजागर हो गया है। धर्मांतरण माफिया ने सिद्धारमैया और उनके मंत्रिमंडल को कानून को वापस लेने के लिए प्रभावित किया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने कहा कि कांग्रेस नई मुस्लिम लीग है और यह हिंदुओं को चोट पहुंचाने के लिए किसी भी हद तक जाएगी।
Bureau Report
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