Hul Diwas 2023: आज ही के दिन वीर आदिवासियों ने फूंका था अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल, तीर-धनुष से छुड़ाए थे छक्‍के

Hul Diwas 2023: आज ही के दिन वीर आदिवासियों ने फूंका था अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल, तीर-धनुष से छुड़ाए थे छक्‍के

साहिबगंज: जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर है बरहेट प्रखंड का भोगनाडीह। कई दिनों से यहां खूब चहल पहल है। प्रशासनिक अधिकारियों की टीम निरीक्षण में जुटी है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी अपने-अपने तरीके से समारोह की तैयारी में जुटे हैं। स्टेडियम में विशाल पंडाल बनवाया जा रहा है। सिदो-कान्हु पार्क की सफाई कराई गई है। कारण, 30 जून को हूल दिवस पर यहां भव्य कार्यक्रम होगा।

सरकार से नाखुश हैं सिदो कान्‍हु के वंशज

गुरुवार शाम तक तैयारी अंतिम चरण में थी। सबसे अहम है कि झारखंड बनने के बाद यहां कई दलों की सरकारें बनीं, लेकिन जिनके सम्मान में लगातार यह समारोह आयोजित होता रहा उनके वंशज व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें रोजगार नहीं मिल पाया, न ही अभी तक यथोचित सम्मान मिला। ग्रामीण असुविधाओं की भी चर्चा करते नहीं थकते।

क्रांतिकारी भाई-बहनों ने हिला दी थी अंग्रेजी शासन की नींव

गुरुवार को सिदो कान्हु के वंशज मंडल मुर्मू भोगनाडीह में दो दिवसीय फुटबाल टूर्नामेंट का उद्घाटन करने पहुंचे। मंडल उनके वंशज में इकलौते हैं, जिन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री ली है। फिर भी बेरोजगार हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकारों को भी कई बार नौकरी के लिए आवेदन दिया, लेकिन कोई पहल नहीं हुई।

अंग्रेजी हुकूमत व महाजनी प्रथा के खिलाफ 30 जून, 1855 को आंदोलन का बिगुल फूंकने वाले वीर शहीद सिदो-कान्हु, चांद-भैरव व फूलो-झानो की जन्मस्थली भोगनाडीह का आज तक समुचित विकास नहीं हुआ। सिदो कान्हु पार्क में फूलो मुर्मू व झानो मुर्मू की प्रतिमा नहीं लगी।

अप्रैल व जून में खुलता पार्क

मंडल मुर्मू कहते हैं कि अप्रैल में सिदो-कान्हु की जयंती व हूल दिवस पर ही पार्क खुलता है। सफाई होती है। उसके बाद ताला लटका रहता है। इस वजह से पार्क देखने की इच्छा दबी रह जाती है। ग्रामीण रामू मरांडी ने बताया कि गांव में लोग कृषि पर ही निर्भर हैं, पर इसके लिए भोगनाडीह गांव में कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।

गांव में डीप बोरिंग नहीं है। शिक्षा की भी स्थिति ठीक नहीं है। भोगनाडीह में सिदो-कान्हु के नाम पर बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान बनाए गए हैं, पर यहां के लोगों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। हल्की आंधी पानी आने पर दो-तीन दिनों के लिए बिजली गायब हो जाती है। अभी सरकार को बलिदानियों की धरती के लिए काफी कुछ करना शेष है।

क्या है हूल दिवस

सिदो-कान्हु, चांद-भैरव व फूलो-झानो छह भाई बहन थे। उनका जन्म बरहेट के छोटे से गांव भोगनाडीह में हुआ था। अंग्रेजों के शोषण व महाजनों के अत्याचार से तंग आकर सिदो-कान्हु के नेतृत्व में 30 जून, 1855 को लोगों ने तत्कालीन अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ विद्रोह (हूल) किया था।

इसमें संताल परगना के दुमका, देवघर, गोड्डा, पाकुड़ पश्चिम बंगाल, भागलपुर समेत अन्य क्षेत्रों के 50 हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे। आंदोलन ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। इसके बाद अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों का दमन शुरू किया। कहा जाता है कि 20 हजार आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया। सिदो-कान्हु को बरहेट के ही पंचकठिया में फांसी की सजा दे दी गई। विद्रोह की याद में हूल दिवस मनाया जाता है।

कार्यक्रम में शामिल होंगे मुख्यमंत्री

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी शामिल होंगे। झामुमो के हजारों कार्यकर्ता जुटेंगे। कोरोना के कारण तीन साल से यहां हूल दिवस पर कार्यक्रम फीका रहा। इस बार जोरदार तैयारी हुई है। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) इसे शक्ति प्रदर्शन के अवसर के रूप में देख रहा है। पूर्व मंत्री हेमलाल मुर्मू हाल ही में भाजपा छोड़ कर झामुमो में फिर लौट आए हैं। अगले साल लोकसभा चुनाव भी है।

भाजपा लगातार जिले में कार्यक्रमों का आयोजन कर राज्य सरकार पर हमला रही है। ऐसे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधानसभा क्षेत्र बरहेट से झामुमो चुनावी संदेश देने को तैयार है। इस बीच पार्टी से नाराज झामुमो के बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रम झारखंड बचाओ मोर्चा के बैनर तले कार्यक्रम के लिए अलग राह पकड़ ली। वह काफी समय से जनसंपर्क में जुटे हैं। भाजपा समेत अन्य दलों के नेता-कार्यकर्ता भी बलिदानियों का नमन करेंगे। 

Bureau Report

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