मेरठ: कई पार्टी नेताओं के भाजपा की सदस्यता लेने पर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने ट्वीट कर ‘साथियों’ पर 2000 रुपये की नोट की तरह चले जाना का तंज कसा, लेकिन वो भी जीत की गुणा-गणित में 55 प्रतिशत से ज्यादा थोक वोट बैंक वाले ओबीसी की अहमियत को बखूबी जानते हैं।
सहारनपुर के पूर्व कैबिनेट मंत्री साहब सिंह सैनी एवं मुजफ्फरनगर के पूर्व राज्यसभा सदस्य राजपाल सैनी समेत कई चेहरों को भगवा चोला पहनाकर भाजपा ने साफ कर दिया कि यह सिलसिला जारी रहेगा। चूंकि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से गुजरता है, ऐसे में पिछड़ा वर्ग को साधकर ही चुनावी वैतरणी पार की जा सकेगी।
2022 के विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर भाजपा की गाड़ी अटकने के बाद अब भगवा रणनीतिकारों ने 2024 को लेकर नई रणनीति बनाई है। जाट मतदाताओं को थामे-बांधे रखने को लेकर बड़ा होमवर्क हो रहा है।
ओबीसी वोटों के पास सत्ता की चाबी
मुजफ्फरनगर दंगे के बाद 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में वैश्य, ब्राह्मण, ठाकुर आदि परंपरागत मतदाताओं ने भाजपा को एकमुश्त वोट दिया। हिंदुत्व की धार और सुशासन की चमक दिखाकर पार्टी ने सैनी, कश्यप, प्रजापति, पाल, बघेल, कुर्मी, पटेल आदि अन्य पिछड़ा वर्ग का वोट हासिल किया। जाट समाज भी भाजपा के साथ चला। परिणामस्वरूप भाजपा को प्रचंड जीत मिली।
जाटों व किसानों के बीच लंबे समय से राजनीति करने वाले रालोद ने प्रदेशभर में 277 सीटों पर प्रत्याशी उतारा, लेकिन सिर्फ एक सीट मिली। बागपत, मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली तक में रालोद का सूपड़ा साफ हो गया।
2022 विधानसभा परिणामों से भाजपा अलर्ट
2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश एवं जयन्त की जोड़ी ने भाजपा को मेरठ, मुजफ्फरनगर व शामली में बैकफुट पर धकेल दिया। ओबीसी वोट बैंक भाजपा के साथ तो गया, लेकिन जाट मतदाता एक बार फिर रालोद खेमे में दिखे। खतौली विस उपचुनाव में तो भाजपा के हाथ से परंपरागत सैनी, पाल, प्रजापति, बिंद, गुर्जर वोट भी निकलते नजर आए।
राजनीतिक पंडितों ने माना कि पश्चिम में जयन्त की चौधराहट फिर साबित हुई, जिसे किसान आंदोलन, पहलवानों के प्रदर्शन एवं चंद्रशेखर के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन से और ताकत मिली है। जाट वोटों को साधने के लिए ही भाजपा का एक खेमा जयन्त को एनडीए में लेने की वकालत कर रहा है, जिसका असर राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड तक पड़ेगा।
Bureau Report
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