राम पर कांग्रेस में ‘असमंजस’ की स्थिति देखी जा रही है। जब तक कांग्रेस नेताओं को राम मंदिर के उद्घाटन के लिए न्योता नहीं आया था, उन्हें इस बात का मलाल था कि उन्हें इस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए आमंत्रित नहीं किया जा रहा है। लेकिन जब उन्हें आमंत्रित कर लिया गया, वे यह निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि उन्हें इस कार्यक्रम में शामिल होना चाहिए या नहीं। सैम पित्रोदा जैसे कुछ कांग्रेस नेताओं ने तो सीधे-सीधे यहां तक कह दिया कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि एक राष्ट्र के रूप में देश को किस दिशा में ले जाया जा रहा है। उन्होंने राम मंदिर के उद्घाटन दिवस पर भाजपा द्वारा एक दिया जलाने के कार्यक्रम का भी विरोध कर दिया।
माना जा रहा है कि कांग्रेस के सामने दुविधा की स्थिति इसलिए है क्योंकि उसे लग रहा है कि यदि उसने राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम में जाने का निर्णय किया, तो उससे मुसलमान मतदाता नाराज हो सकता है। और यदि उसने इस कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार किया, तो इससे उनकी छवि हिंदू विरोधी बन जाएगी, जिसका प्रयास भाजपा लगातार करती रहती है। सैम पित्रोदा के बयान के बाद भी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने यही रुख अपनाया और कांग्रेस पर जबरदस्त हमला बोला। ऐसे में बड़ा प्रश्न यही है कि कांग्रेस का राम मंदिर मुद्दे पर रुख क्या होना चाहिए?
कांग्रेस को क्यों करना पड़ता है ये काम
सियासी जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी या प्रियंका गांधी कई बार हिंदू मंदिरों में दर्शन करते देखे जाते हैं। यदि कांग्रेस को राहुल गांधी को ‘जनेऊधारी ब्राह्मण’ बताने की जरूरत पड़ती है, तो इसका बड़ा कारण यही है कि वह स्वयं यह मानती है कि उसके ऊपर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाया जा रहा है और इसे खारिज करने के लिए ही उसे इस तरह के उपक्रम करने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में यदि वे राम मंदिर के उद्घाटन पर नहीं जाएंगे, तो इससे भाजपा को उसके खिलाफ माहौल बनाने का अवसर मिलेगा। यह किसी भी प्रकार से कांग्रेस के पक्ष में नहीं जाएगा।
लेकिन यह भी सही है कि तमाम विपक्षी दलों से निराश होने के बाद मुसलमान अब कांग्रेस की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है। ऐसे में वह मुस्लिम मतदाता को निराश करने का जोखिम भी नहीं उठा सकती। यह वोट बैंक कांग्रेस को एक ठोस धरातल देता है जिस पर खड़े होकर वह आगे के राजनीतिक लक्ष्य हासिल कर सकती है। उत्तर प्रदेश जैसे बेहद महत्त्वपूर्ण राज्य में यदि उसे वापसी करनी है तो उसके पास यही वोट बैंक सबसे बड़ा आधार बन सकता है।
अयोध्या में जाने से मुसलमानों की नाराजगी की बात सही नहीं
सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस नेताओं को यह नहीं मानना चाहिए कि केवल राहुल गांधी या सोनिया गांधी के राम मंदिर कार्यक्रम में जाने से मुसलमान मतदाता नाराज हो जाएगा। कांग्रेस इस मामले में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल से भी सीख ले सकती है कि किस तरह वह हनुमान आरती का आयोजन भी करती है और मुसलमानों को भी साथ रख लेती है।
नीतीश कुमार, लालू यादव, ममता बनर्जी, केसीआर और हेमंत सोरेन जैसे नेता दोनों समुदायों को साथ रखने की राजनीति सफलतापूर्वक अपना रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस यह क्यों नहीं कर सकती?
अयोध्या जाना चाहिए
राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार ने अमर उजाला से कहा कि यदि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के कारण और सोनिया गांधी अपने स्वास्थ्य कारणों से अयोध्या नहीं पहुंच सकते, तो यह काम मल्लिकार्जुन खरगे, अधीर रंजन चौधरी को निभाना चाहिए। लेकिन कांग्रेस को समझना चाहिए कि देश गांधी परिवार को ही कांग्रेस समझता है। ऐसे में गांधी परिवार के गए बिना उसका काम नहीं बन सकता। ऐसे में प्रियंका गांधी को इस अवसर पर अयोध्या पहुंचना चाहिए।
उनका कहना है कि यदि किसी भी कारण उद्घाटन कार्यक्रम में जाना संभव न हो, तो कार्यक्रम के तुरंत बाद अलग से अयोध्या की यात्रा कर हिंदू जनमानस को साथ लेने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए विशेष कार्यक्रमों की शुरुआत भी की जा सकती है। लेकिन उसे किसी भी तरह अयोध्या से स्वयं को दूर नहीं रखना चाहिए। यदि उसने स्वयं को अयोध्या से दूर रखा तो उसे उसी तरह का नुकसान होगा, जिस तरह सरदार पटेल की एकता मूर्ति से दूर रहने के कारण गुजरात विधानसभा चुनाव में हुआ था।
दुविधा का कारण
दरअसल, कांग्रेस नेताओं का मानना है कि हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कहीं भी सॉफ्ट हिंदुत्व का मुद्दा उसे बचाने में कामयाब नहीं रहा। मध्यप्रदेश में कमलनाथ बार-बार हनुमान मंदिर बनवाने, कथा वाचक धीरेंद्र शास्त्री के धार्मिक आयोजन कराने और सॉफ्ट हिंदू होने को लेकर बयान देते रहे। लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस की करारी हार हुई।
इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने कौशल्या मंदिर बनवाने, राम वन गमन पथ पर काम करने के साथ-साथ गाय के गोबर को लेकर तमाम हिंदू हितैषी योजनाओं की शुरुआत की। लेकिन इसके बाद भी छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार नहीं बच सकी। इसी प्रकार राजस्थान में अशोक गहलोत ने भी हिंदू पुजारियों को लेकर कई अच्छे काम किए, लेकिन उन्हें इसका लाभ नहीं मिला।
राजनीतिक विश्लेषक संजय रत्न श्रीवास्तव कहते हैं कि कोई भी नकली सामान नहीं खरीदता। जब तक असली हिंदुत्व के दावेदार के रूप में भाजपा मौजूद है, कोई कांग्रेस के हिंदुत्व की सोच को क्यों स्वीकार करेगा। चूंकि, कई कारणों से कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण करने के आरोप लगते रहे हैं, ऐसे में उसके सॉफ्ट हिंदुत्व को दिखावे के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में कांग्रेस की सॉफ्ट हिंदुत्व की नीति कारगर नहीं होती।
लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि कांग्रेस हिंदुओं के कार्यक्रम में ही न जाए। इससे तो उस पर मुस्लिम तुष्टीकरण में हिंदुओं की उपेक्षा का आरोप ही लगेगा, जो भाजपा द्वारा सफलतापूर्वक चलाई जा रही बहुसंख्यकवाद की राजनीति के दौर में आत्मघाती कदम होगा। कांग्रेस को इसके बीच अपना नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए, जिसमें वह हिंदुओं-मुसलमानों को साथ लेकर चले।
लेकिन इसके साथ बेरोजगारी, महंगाई, सामाजिक असमानता और संवैधानिक संस्थाओं की उपेक्षा जैसे जमीनी मुद्दे उठाकर लोगों को अपने साथ एकजुट करे। कांग्रेस की यही नब्ज रही है और यदि उसे केंद्र की राजनीति में वापसी करनी है तो उसे अपने मूल सिद्धांतों पर लौटना चाहिए।
Bureau Report
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