Politics: महाराष्ट्र में सरकार गठन के बाद महायुति में किन मुद्दों पर दिखा तनाव, क्या टूट सकता है गठबंधन? जानें

Politics: महाराष्ट्र में सरकार गठन के बाद महायुति में किन मुद्दों पर दिखा तनाव, क्या टूट सकता है गठबंधन? जानें

महाराष्ट्र में पिछले साल के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में महायुति को जबरदस्त बहुमत मिला। यह बहुमत कितना मजबूत था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में से 235 पर महायुति की तीन पार्टियां काबिज हो गईं। यानी करीब 81 फीसदी सीटें भाजपा के नेतृत्व वाले इस गठबंधन के खाते में गई थीं। ऐसे में चुनाव नतीजों के बाद माना जा रहा था कि महायुति की सरकार में आपसी तनाव की स्थिति कम देखने को मिलेगी और विपक्ष की जबरदस्त कमजोरी की वजह से उसे पूरे पांच साल तक शासन करने में आसानी होगी। 

हालांकि, नतीजों के ठीक बाद पहले मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना और भाजपा के बीच खटपट की खबरों और अब अलग-अलग मुद्दों को लेकर सियासी बयानबाजी ने महायुति में दरार की अटकलों को हवा दी है। खासकर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की ओर से दिया गया हालिया बयान, जिसमें उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि मुझे हल्के में न लें। 2022 में जब मुझे हल्के में लिया गया तब मैंने सरकार बदल दी। 

ऐसे में यह जानना अहम है कि महाराष्ट्र की राजनीति में इस वक्त चल क्या रहा है? 2024 के विधानसभा चुनाव के बाद से कब-कब सत्तासीन महायुति में तनाव की खबरें सामने आई हैं? इस तनाव की वजह क्या रही थीं? एकनाथ शिंदे के हालिया बयान की क्या वजह और क्या मायने हैं? इसके अलावा इस बयान के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राकांपा-एसपी के नेता शरद पवार के साथ मंच साझा करना और उनके लिए जबरदस्त आदर दिखाना महाराष्ट्र की राजनीति में क्या संकेत देता है? 

महायुति में किन-किन बातों पर तनाव?

1. मुख्यमंत्री-मंत्री पदों को लेकर खींचतान
महाराष्ट्र में चुनाव के बाद महायुति में सबसे बड़ा मुद्दा मुख्यमंत्री पद को लेकर रहा। राजनीतिक विश्लेषक समीर चौगांवकर के मुताबिक, महाराष्ट्र विधानसभा के जब चुनाव हुआ तो महायुति ने किसी को भी मुख्यमंत्री घोषित नहीं किया था। ऐसे में एकनाथ शिंदे को लग रहा था कि महायुति चुनाव जीतने के बाद उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाएगी। हालांकि, जिस तरह चुनाव में भाजपा की 132 सीटें आ गईं और अजित पवार की पार्टी ने भी बेहतरीन प्रदर्शन कर दिया। 

इन स्थितियों के बीच भाजपा और शिवसेना में कुछ तनाव देखने को मिला। एकनाथ शिंदे इस दौरान अपने गांव चले गए थे। खुलकर तो दोनों ही पार्टियों ने सीएम पद को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ बयान नहीं दिए, लेकिन उनका डिप्टी सीएम बनने के लिए साफ संकेत न देने और लंबे समय तक शपथग्रहण के लिए मुंबई न लौटने से यह साफ था कि महायुति में सब ठीक नहीं है। 

राजनीतिक विश्लेषक चौगांवकर के मुताबिक, जब भाजपा ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बना दिया, तब एकनाथ शिंदे इसके बाद चाहते थे कि गृह मंत्रालय उनकी पार्टी को दिया जाए। लेकिन भाजपा ने गृह मंत्रालय भी उन्हें नहीं दिया। उनके कई अच्छे मंत्री, जैसे दीपक केसरकर को भी भाजपा ने मंत्रीपद देने से इनकार कर दिया। ऐसे में एकनाथ शिंदे को लग सकता है कि उन्हें महायुति में अलग-थलग किया जा रहा है। क्योंकि अजित पवार की पार्टी के पास उतनी सीटें आ गई थीं, जितनी राज्य में भाजपा की सरकार बनाने के लिए काफी थी। यानी अगर एकनाथ शिंदे सरकार में नहीं रहते तो भी भाजपा अजित पवार की मदद से आसानी से सरकार चला सकती है। 

2. जिलों के प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति पर मतभेद
भाजपा और शिवसेना) के बीच जिलों के प्रभारी मंत्रियों की नियुक्तियों को लेकर संघर्ष देखने को मिला है। शिंदे गुट सत्ता के बंटवारे से असंतुष्ट नजर आया है। महाराष्ट्र में कैबिनेट मंत्री की तरह ही जिलों के प्रभारी मंत्री के पद को लेकर प्रतियोगिता रहती है। पिछले महीने ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के 36 जिलों के प्रभारी मंत्रियों की घोषणा कर दी थी। इस बार विवाद मुख्यतः दो जिलों में- रायगढ़ और नासिक में नियुक्तियों पर केंद्रित रहा। 

दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की अदिति तटकरे को रायगढ़ और भाजपा के गिरीश महाजन को नासिक जिले का प्रभारी मंत्री नियुक्त किया। हालांकि, करीब एक दिन बाद ही सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया। तब सामने आया था कि डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे इन नियुक्तियों से नाराज हैं, जो कि अपनी पार्टी से मंत्री भरत गोगावले और दादाजी भुसे को इन जिलों के प्रभारी मंत्री के तौर पर चाहते थे। बताया जाता है कि प्रभारी मंत्रियों की लिस्ट जाने के ठीक बाद ही एकनाथ शिंदे सतारा में अपने पैतृक गांव पहुंच गए। बताया जाता है कि शिंदे की इस नाराजगी को खत्म करने के लिए ही फडणवीस ने बाद में रायगढ़ और नासिक में नियुक्तियों को टाल दिया।

3. शिवसेना नेताओं की सुरक्षा घटाने पर विवाद
सीएम देवेंद्र फडणवीस ने बीते हफ्ते ही 20 से अधिक शिवसेना नेताओं की सुरक्षा में बदलाव किया था। उनकी सुरक्षा को वाई+ श्रेणी से घटा दिया गया था। वहीं कुछ और शिवसेना नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली गई थी। अक्तूबर 2022 में शिंदे के सीएम बनने के बाद, जिन 44 विधायकों और 11 लोकसभा सदस्यों ने शिंदे का समर्थन किया था, उन्हें वाई+ सुरक्षा कवर दिया गया था।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीएम के मंत्रियों को छोड़कर बाकी सभी विधायकों की सुरक्षा घटा दी। कई पूर्व सांसदों से भी सुरक्षा वापस ले ली गई। इनमें भाजपा और राकांपा के कुछ नेता, शिवसेना से जुड़े लोग, और अन्य सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। शिवसेना की तरफ से इस कदम को लेकर कोई प्रतिक्रिया तो नहीं दी गई, लेकिन मराठी मीडिया में एकनाथ शिंदे की नाराजगी की बातें सामने आईं।

4. शिंदे और फडणवीस की बैठकों में मतभेद
कुछ खबरों के मुताबिक, पिछले महीने डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने नासिक मेट्रोपॉलिटन क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण की बैठक छोड़ दी थी। इस बैठक को सीएम फडणवीस ने बुलाया था। रिपोर्ट्स में कहा गया कि बाद में शिंदे ने खुद इस विषय पर अपनी समीक्षा बैठक की। 

हाल ही में शिंदे ने मंत्रालय में एक नया डिप्टी सीएम का मेडिकल एड सेल स्थापित किया और अपने करीबी सहयोगी को इसका प्रमुख नियुक्त किया। यह पहली बार है जब किसी डिप्टी सीएम ने सीएम रिलीफ फंड सेल के बावजूद ऐसा सेल स्थापित किया है। इस बात से फडणवीस के समर्थकों में भी बातें तेज है। 

समीर चौगांवकर के मुताबिक, हो सकता है कि एकनाथ शिंदे को लगने लगा कि मैंने जो मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया, अब देवेंद्र फडणवीस उसी को आगे बढ़ाते हुए एक बड़ी लकीर खींचना चाहते हैं। एकनाथ शिंदे को लगा होगा कि उन्हें सरकार में और गठबंधन में नजरअंदाज किया जा रहा है। बैठकों में भी उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है।

ऐसे में उन्होंने अपने शब्दों में नाराजगी जाहिर की है। उन्हें पता है कि महाराष्ट्र में नगर निगम स्तर के चुनाव आ रहे हैं। इनमें बीएमसी, पीएमसी के अहम चुनाव भी शामिल हैं। शिंदे गठबंधन में अपनी भूमिका चाहते हैं। यह स्थानीय स्तर की राजनीति है, जहां उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि उन्हें ज्यादा नजरअंदाज न किया जाए और जो भूमिका उनकी रही है, वह महाराष्ट्र की राजनीति और महायुति में वह भूमिका उनकी बनी रहे।

5. विवादित नियुक्तियां और बदलाव
फडणवीस को एक महत्वपूर्ण पद पर नामित किया गया था, लेकिन शिंदे को महाराष्ट्र आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से बाहर रखा गया। इसके बाद नियमों में बदलाव किया गया, ताकि शिंदे को इसमें शामिल किया जा सके। इसी तरह, एमएसआरटीसी का अध्यक्ष एक नौकरशाह को नियुक्त किया गया, जबकि पहले परिवहन मंत्री इस पद पर रहते थे, जो कि मौजूदा समय में शिवसेना नेता प्रताप सरनाईक के पास है। 

तो क्या महाराष्ट्र में महायुति में हो सकती है टूट?
चौगांवकर ने कहा कि फिलहाल महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और भाजपा के अलग होने की संभावना नहीं है। एकनाथ शिंदे के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। उन्हें पता है कि अगर वह महायुति गठबंधन से बाहर हो गए तो उनके विधायक भी उनका साथ छोड़ने की स्थिति में आ जाएंगे। क्योंकि वह सत्ता में हैं, इसलिए वो मंत्री बने हुए हैं। शिवसेना विधायकों को पता है कि मौजूदा समय में उन्हें सत्ता का समर्थन हासिल है। इसलिए वे सब साथ बने हुए हैं। एकनाथ शिंदे भी यह बातें समझते हैं। 

क्या शरद पवार के साथ पीएम मोदी का मेलजोल कुछ दर्शाता है?
शरद पवार के साथ पीएम मोदी के मंच साझा करने और उनके प्रति आदर दिखाने के घटनाक्रम पर चौगांवकर कहते हैं कि यह कोई राजनीतिक इशारा नहीं लगता। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी का विपक्ष के नेताओं के साथ एक अच्छा रिश्ता दिखता रहा है। सिर्फ शरद पवार ही नहीं, समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के प्रति भी वह इसी तरह का सम्मान प्रदर्शित करते रहे हैं, एचडी देवेगौड़ा के प्रति भी वह आदर प्रकट करते रहे हैं। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता, जिनमें गुलाम नबी आजाद भी शामिल रहे हैं, जब उनका वे राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा था, तब पीएम मोदी ने उनके प्रति सम्मान दर्शाया था। ऐसा कहा गया था कि उस भाषण के दौरान पीएम मोदी की आंखों में आंसू आ गए थे। यानी पीएम मोदी का वरिष्ठ नेताओं को सम्मान देने का सिलसिला चलता रहा है। 

उन्होंने कहा, “लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि शरद पवार और भाजपा साथ आ सकते हैं। विधानसभा चुनाव से पहले जब शरद पवार को भाजपा के साथ जाने की स्थिति थी, तब भी वे नहीं गए। अजित पवार भी जब गए थे, तब भी शरद पवार टस से मस नहीं हुए। बाद में अजित खुद ही वापस आ गए थे। आखिरकार  अजित पवार हमेशा के लिए राकांपा छोड़कर चले गए। उनसे उनकी पार्टी का नाम ले लिया, उनका चुनाव चिह्न ले लिया। आज अजित पवार के पास विधायक भी ज्यादा हैं। लेकिन शरद पवार अभी भी अलग हैं। ऐसे में शरद पवार महायुति के साथ जाएंगे या अजित पवार के साथ सुलह करेंगे, इसकी संभावना काफी कम है।” 

Bureau Report

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