निर्भया गैंगरेप के 4 साल इस घटना के बाद कितने बदले हालात, क्या अब सुरक्षित हैं महिलाएं?

निर्भया गैंगरेप के 4 साल इस घटना के बाद कितने बदले हालात, क्या अब सुरक्षित हैं महिलाएं?नईदिल्ली: कड़कड़ाती ठंड में दिल्ली की सड़कों पर चलती बस में 6 दरिंदों ने एक मासूम लड़की के साथ हैवानियत की। इसके बाद पूरा देश उबल पड़ा। हर तरफ गुस्से की लपटें थीं। जज्बातों का सैलाब था। निर्भया की मौत के बाद पूरा देश एक आवाज बन गया था। एक घटना किस तरह से सामाजिक, राजनीतिक बदलाव की नींव बन जाती है, इसका सटीक उदाहरण है निर्भया का मामला। चार साल बाद इस घटना के चौतरफा असर पर एक नजर… 

निर्भया कांड सामने आने के चंद दिन बाद 21 दिसंबर को इंडिया गेट और रायसीना हिल पर प्रदर्शन हुआ। इसके साथ ही पूरे देश में प्रदर्शनों का दौर शुरू हुआ। 29 दिसंबर को निर्भया की मौत के बाद इनमें तेजी आई। अन्ना आंदोलन से पैदा हुए राजनीतिक विक्षोभ को निर्भया कांड ने बल दिया। देशभर में हुए प्रदर्शनों से साफ हुआ कि देश की जनता बिना किसी राजनीतिक एजेंडे के भी सामाजिक बदलाव के लिए सड़क पर उतरती है। 

संसद में मसला गूंजा। एक पूरा दिन सदन में महिला सांसदों के नाम रहा। सभी ने कड़ी सजा की मांग की। तत्कालीन नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने रेपिस्टों को फांसी पर चढ़ाने की मांग की। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पीडि़ता से मिलने अस्पताल पहुंचीं। महिला सुरक्षा सबसे बड़े मुद्दों में शुमार हुआ। 2014 के आम चुनाव हों, या दिल्ली, महाराष्ट्र आदि के विधानसभा चुनाव, हर जगह महिला सुरक्षा को तरजीह मिली। पार्टियों के घोषणा पत्र में यह शीर्ष क्रम में शामिल हुआ।

22 दिसंबर को जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया। 80 हजार सुझावों और दुनिया भर के कानूनी उदाहरणों का अध्ययन किया। इसके बाद वर्मा कमेटी ने महज 29 दिनों में रिपोर्ट सौंपी। कमेटी के 90 प्रतिशत के आधार पर नया कानून बना। जो 3 अप्रैल 2013 से प्रभावी हुआ। 

 महिलाओं की देह पर होने वाले आक्रमण और यौन प्रताडऩा के अपराध भी इसमें शामिल किए गए। 

नए कानून में महिलाओं का पीछा करने जैसे अपराध भी शामिल किए गए। 

तेजाब फेंकने और निर्वस्त्र करने जैसी घटनाओं को अलग से अपराध की श्रेणी में रखा गया। 

महिलाओं को एकांत के पलों में छिपकर देखना, किसी स्त्री की तस्वीर का बिना सहमति के आदान प्रदान अपराध की श्रेणी में आया।

पुलिस अधिकारी शिकायत नहीं दर्ज करता या खुद यौन हिंसा करता है तो उसे निश्चित तौर पर एक अवधि के लिए जेल की सजा भुगतनी होगी।

सबूत जुटाने की प्रक्रिया और सुनवाई महिलाओं और विकलांगों के लिए अपेक्षाकृत आसान हुई।

नए कानून में दुष्कर्म की परिभाषा साफ की गई। इसमें साफ कहा गया है कि दुष्कर्म का विरोध करने में अगर शारीरिक संघर्ष के निशान न भी हों तब भी इसका मतलब रजामंदी से सेक्स नहीं होता।

निर्भया कांड का फिल्मों से धारावाहिकों तक और सोशल मीडिया से नाटकों तक हर जगह असर पड़ा। हाल ही नेवर अगेन निर्भया नाम की फिल्म आने वाली है। यूट्यूब-फेसबुक पर लोगों ने खुलकर राय रखी।

हमारे आंसू अभी तक सूखे नहीं हैं। हर दिन के गुजरने के साथ उसकी यादें और गहरी होती जाती हैं। घर पर कोई कोई तो हमेशा रोता रहता है। हम कभी इससे उबर नहीं पाएंगे और वह हमारे बीच अभी भी जीवित है। पत्नी जब भी कुछ पकाती है तो वह अपनी बेटी को याद करती है। जब भी हम खाना खाने बैठते हैं, मेरी पत्नी कहती है कि यह उसका पसंदीदा खाना है और हम उसके बिना ही इसे खा रहे हैं। निर्भया के पिता 

Bureau Report

 

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*