नईदिल्लीः 26 जुलाई को बिहार के सीएम नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होने और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के मामले पर आज पटना हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है. 28 जुलाई को पटना हाईकोर्ट ने ने बीजेपी के साथ मिलकर नीतीश कुमार की जेडीयू द्वारा नई सरकार के गठन को चुनौती देने वाली दो जनहित याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था और इन पर सुनवाई के लिए आज का दिन तय किया है. शुक्रवार को संक्षिप्त सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन और न्यायमूर्ति एके उपाध्याय की खंडपीठ ने मामले को स्थगित कर दिया.
दो जनहित याचिकाएं दायर की गईं
बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार के महत्वपूर्ण विश्वासमत से पहले दो जनहित याचिकाएं दायर की गई और दोनों के वकीलों ने अदालत में अपना पक्ष रखा. पहली याचिका राजद विधायकों सरोज यादव और चंदन वर्मा की ओर से जबकि दूसरी याचिका समाजवादी पार्टी के सदस्य जितेन्द्र कुमार की ओर से दायर की गई है. याचिकाओं में अदालत से अनुरोध किया गया है कि राज्य में सरकार बनाने के लिये सबसे बडे दल के नेता को आमंत्रित करने का निर्देश दिया जाए.
28 को क्या हुआ कोर्ट में?
प्रधान अवर महाधिवक्ता ललित किशोर और अवर सॉलिसिटर जनरल एस. डी. संजय ने जनहित याचिकायें को ‘निरर्थक’ बताते हुए कहा कि ये गंभीरता से विचार करने योग्य नहीं हैं. किशोर ने अदालत से कहा कि याचिकाओं की प्रति केन्द्र सरकार के वकील को दी गई है लेकिन वह अन्य पक्षों राज्यपाल, भारत निर्वाचन आयोग और बिहार सरकार को नहीं दी गयी हैं.
बता दें कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने रांची में कहा था कि वह नीतीश सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती देंगे. कोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि नीतीश कुमार और राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने नई सरकार बनाने के फैसले के दौरान नियमों की अनदेखी की है.
इससे पहले 28 जुलाई को बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहुमत हासिल किया था. वोटिंग में जेडीयू-बीजेपी के पक्ष में 131 वोट और विरोध में 108 वोट डाले गए. 243 सदस्यीय विधानसभा में नीतीश को बहुमत के लिए 122 सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी. जेडीयू के पास 71, बीजेपी के 53, उपेंद्र कुशवाह की राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के 2, राम विलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी के 2, जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा का एक और तीन निर्दलीय विधायकों मत हैं.
Bureau Report
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