‘राइट टू प्राइवेसी’ क्या एक मौलिक अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

'राइट टू प्राइवेसी' क्या एक मौलिक अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसलानईदिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आज इस सवाल पर अपना फैसला सुना सकता है कि क्या निजता का अधिकार को संविधान में दिया एक मौलिक अधिकार माना जा सकता .चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी. यह सुनवाई दो अगस्त को पूरी हुई थी. सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विरोध में दलीलें दी गईं. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस आर एफ नारिमन, जस्टिस ए एम सप्रे, जस्टिस धनन्जय वाईचन्द्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. 

केंद्र सरकार द्वारा आधार को जरूरी बनाने के कदम के बाद उठा निजता का मुद्दा

निजता के अधिकार का मुद्दा केन्द्र सरकार की तमाम समाज कल्याण योजनाओं का लाभ हासिल करने के लिए आधार को अनिवार्य करने संबंधी केन्द्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा. शुरू में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सात जुलाई को कहा था कि आधार से जुड़े सारे मुद्दों पर वृहद पीठ को ही फैसला करना चाहिए और प्रधान न्यायाधीश इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिए कदम उठाएंगे. इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश के सामने इसका उल्लेख किया गया तो उन्होंने इस मामले में सुनवाई के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी. 

नौ सदस्यीय पीठ का गठन किया गया

हालांकि, पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करने के लिये नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी. संविधान पीठ के सामने विचारणीय सवाल था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता है. न्यायालय ने शीर्ष अदालत की छह और आठ सदस्यीय पीठ द्वारा क्रमश: खडेक सिंह और एम पी शर्मा केसों में दी गयी व्यवस्थाओं के सही होने की विवेचना के लिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का फैसला किया था. इन फैसलों में कहा गया था कि यह मौलिक अधिकार नहीं है. खडक सिंह प्रकरण में न्यायालय ने 1960 में और एम पी शर्मा प्रकरण में 1950 में फैसला सुनाया था.

2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने दो अगस्त को फैसला सुरक्षित रखते हुये सार्वजनिक दायरे में आयी निजी सूचना के संभावित दुरूपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि मौजूदा प्रौद्योगिकी के दौर में निजता के संरक्षण की अवधारणा ‘एक हारी हुयी लडाई’ है. इससे पहले, 19 जुलाई को सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की थी कि निजता का अधिकार मुक्म्मल नहीं हो सकता और सरकार के पास इस पर उचित प्रतिबंध लगाने के कुछ अधिकार हो सकते हैं.

क्या दलीलें दी गईं सुप्रीम कोर्ट में?

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आ सकता क्योंकि वृहद पीठ के फैसले हैं कि यह सिर्फ न्यायिक व्यवस्थाओं के माध्यम से विकसित एक सामान्य कानूनी अधिकार है. केन्द्र ने भी निजता को एक अनिश्चित और अविकसित अधिकार बताया था ,गरीब लोगों को जिसे जीवन, भोजन और आवास के उनके अधिकार से वंचित करने के लिये प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है.

इस दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुडे अनेक सवाल पूछ. इस बीच, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार जीने की स्वतंत्रता में ही समाहित है. उनका यह भी कहना था कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार शामिल है.

Bureau Report

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