नईदिल्ली: दिल्ली पुलिस ने गुजरात के वडगाम के विधायक जिग्नेश मेवाणी को संसद मार्ग पर रैली करने की इजाजत देने सेे मंगलवार को इनकार कर दिया, जबकि जिग्नेश मेवाणी की टीम रैली करने पर अड़ी है. जिग्नेश के सहयोगी अखिल गोगोई ने कहा है कि ‘हम रैली करेंगे’. दिल्ली पुलिस ने एनजीटी का हवाला देते हुए उन्हें इजाजत नहीं दी. ऐहतियातन संसद मार्ग पर भारी संख्या में सुरक्षा बल की तैनाती की गई है.
ज्वॉइंट सीपी अजय चौधरी ने कहा कि किसी को इजाजत नहीं दी गई है. एनजीटी ने आदेश दिया है कि जंतर-मंतर पर कोई प्रदर्शन नहीं होगा. लिहाजा, हमने आयोजकों से वैकल्पिक स्थान रामलीला मैदान में प्रदर्शन करने को कहा है.
दरअसल, दिल्ली पुलिस की तरफ से संसद मार्ग पर रैली के लिए वडगाम के विधायक जिग्नेश मेवाणी के अनुरोध को नामंजूर करने के बाद भी दलित नेता और गुजरात से पहली बार विधायक बने जिग्नेश मेवाणी संसद मार्ग से पीएम निवास तक ‘युवा हुंकार रैली’ रैली करने पर अड़े हुए हैं. जिग्नेश मेवाणी की ‘युवा हुंकार रैली’ से पहले क्षेत्र में पोस्टर देखे जा रहे हैं.
जिग्नेश मेवाणी ने भी ट्वीट कर बीजेपी को चुनौती दी है. जिग्नेश ने लिखा है कि ‘बांध ले बिस्तर बीजेपी, राज अब जाने को है, ज़ुल्म काफ़ी कर चुके, पब्लिक बिगड़ जाने को है’. दिल्ली पुलिस के डीसीपी ने ट्वीट कर जानकारी दी कि आयोजको को किसी और जगह पर जाने का सुझाव दिया जा रहा है, लेकिन आयोजक मान नहीं रहे हैं. सामाजिक न्याय’ रैली या ‘युवा हुंकार रैली’ की योजना तैयार की गई थी, जिसे मेवाणी और असम के किसान नेता अखिल गोगोई को संबोधित करना है.
कहा जा रहा है कि दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस को मेवाणी को रैली करने की इजाजत नहीं दी है. पुलिस का कहना है कि यदि जबरदस्ती रैली की गई तो कार्रवाई की जाएगी. गौरतलब है कि जिग्नेश मेवाणी ने पार्लियामेंट स्ट्रीट में 9 जनवरी को सामाजिक न्याय के लिए ‘युवा हुंकार रैली व जनसभा’ करने का ऐलान करने की घोषणा की थी. मेवाणी की रैली का मकसद देश में दलितों पर हो रहे अत्याचार और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को रिहा करने की मांग की गई थी. गणतंत्र दिवस के दौरान पूरे नई दिल्ली इलाके में धारा 144 लगा दी जाती है. इस दौरान किसी भी तरह के कार्यक्रम की इजाजत नहीं दी जाती है. पुलिस ने कहा कि यदि किसी भी तरह धारा 144 को तोड़ा गया तो कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी.
आपको बता दें कि जिग्नेश मेवाणी ने भीमा-कोरेगांव में दलितों के कार्यक्रम के दौरान हुई हिंसा के बाद उनपर दर्ज किए गए केस को लेकर बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधा था. 5 जनवरी को दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मीडिया से बात करते हुए गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से हाल ही में विधायक चुने गए मेवाणी ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की कि वह देश के दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा पर चुप्पी तोड़ें.
9 जनवरी को समाजिक न्याय रैली
मेवाणी ने कहा था, ‘खुद को आंबेडकरवादी बताने वाले पीएम मोदी चुप क्यों हैं? उन्हें अपना रुख साफ करना चाहिए कि दलितों को शांतिपूर्ण तरीके से रैलियां करने का हक है कि नहीं’. मेवाणी ने बताया था कि 9 जनवरी को आहूत अपनी सामाजिक न्याय के लिए युवा हुंकार रैली के दौरान वह मनुस्मृति एवं संविधान की प्रतियां लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) जाएंगे और मोदी से कहेंगे कि वह दोनों में से किसी एक को चुनें.
जिग्नेश और उमर खालिद पर भड़काउ भाषण का केस
गौरतलब है कि बीते 31 दिसंबर को पुणे में भीमा कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने की याद में आयोजित कार्यक्रम ‘एलगार परिषद’ में मेवाणी और जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वाले कश्मीरी छात्र उमर खालिद ने हिस्सा लिया था. पुणे के एक निवासी की ओर से दाखिल शिकायत के मुताबिक, उनके ‘‘भड़काऊ’’ भाषणों का मकसद समुदायों के बीच दुर्भावना पैदा करना था, जिसकी वजह से एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई.
बीजेपी संघ बना रहे हैं निशाना
जिग्नेश मेवाणी ने इस आरोप को नकारा कि पुणे में उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया. उन्होंने कहा कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) उन्हें निशाना बना रहे हैं. मेवाणी ने कहा, ‘‘न तो मैंने कोई भड़काऊ भाषण दिया और न ही महाराष्ट्र में बंद में हिस्सा लिया. किसी संवैधानिक विशेषज्ञ को मेरे भाषण का विश्लेषण करने और कुछ भी अभद्र ढूंढने को कहें.’’
मेवाणी ने कहा कि 31 दिसंबर को हुई जनसभा के बाद उन्हें माइग्रेन (सिरदर्द) हो गया. उन्होंने कहा, ‘‘जनसभा के बाद मुझे भयंकर माइग्रेन हो गया. न तो मैंने मुंबई में किसी गतिविधि में हिस्सा लिया, न ही बंद में हिस्सा लिया और न ही भीमा कोरेगांव गया.’’ भाजपा और संघ (आरएसएस) मुझे निशाना बना रहे हैं.
उमर खालिद ने कहा था कि हिंसा का वीडियो साक्ष्य होने के बावजूद यह हास्यास्पद है कि हमें निशाना बनाया जा रहा है. यह संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे से ध्यान भटकाने के एजेंडे का हिस्सा है. समस्त हिंदू अघाड़ी के एकबोटे और शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के भिड़े भीमा कोरेगांव में हिंसा सुनियोजित तरीके से कराने के आरोपों से घिरे हैं .उमर खालिद ने कहा कि महाराष्ट्र में जनवरी 2014 में हुई एक रैली में मोदी ने संभाजी भिड़े को तपस्वी या महापुरुष कहा था और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे.
भीमा-कोरेगांव हिंसा के बाद मुंबई बंद
200 साल पहले लड़ी गई लड़ाई की वर्षगांठ पर हुई हिंसा के विरोध में दलित संगठनों की ओर से कराए गए बंद के कारण तीन जनवरी को महाराष्ट्र में आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था. दलित संगठन भीमा कोरेगांव की लड़ाई में महाराष्ट्र के पेशवा के खिलाफ अंग्रेजों की जीत को याद करते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि महार समुदाय के सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी के बलों का हिस्सा थे. पेशवा ब्राह्मण थे और भीमा कोरेगांव की लड़ाई में मिली इस जीत को दलितों की जीत के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है.
Bureau Report
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