‘नोटबंदी की मार से चाय का अगला सीज़न नहीं, बल्कि पूरा साल खराब होगा’

'नोटबंदी की मार से चाय का अगला सीज़न नहीं, बल्कि पूरा साल खराब होगा'कोलकाता:  चाय उद्योग पहले ही बुरे दौर से गुज़र रहा था और अब उसपर नोटबंदी की मार पड़ गई है। नोटबंदी का समय इस कारोबार के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण साबित हो रहा है। पिछला सीज़न हाल में खत्म हुआ है और अगले सीजन की तैयारी होनी है, जो कैश की कमी और मज़दूरों के भाग जाने से नहीं हो पाएगी।

दार्जिलिंग में नक्सलबाड़ी चाय बागान की मालिक सोनिया जब्बार कहती हैं कि कैश की कमी के साथ ही आरबीआई के जटिल और बार-बार बदलते नियमों से चाय बागान बंद करने पड़ रहे हैं। उनके पड़ोसी चाय बाग़ान पर मालिकों ने ताला लगा दिया है और मेहनताना नहीं मिलने से मज़दूर नेपाल लौट रहे हैं। कैच को दिए गए इंटरव्यू में जब्बार ने बताया कि किस तरह 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद से चाय उद्योग पर मार पड़ी है। 

देखिए, मेरे पास के चाय बागान पर ताला लग गया है। मज़दूर वापस नेपाल भाग गए हैं क्योंकि उनके मालिक उन्हें मजदूरी नहीं दे सके। मेहनताना नहीं मिलने से मज़दूरों ने चाय बागान के कई प्रबंधकों को घेर लिया था। वे नहीं समझते कि हम उन्हें मज़दूरी क्यों नहीं दे पा रहे हैं। उन्हें तो बस अपने पैसे और रोज़मर्रा की जरूरतों से मतलब है।

उनकी मदद के लिए हम स्थानीय किराने वालों से मिले और मज़दूरों को सामान देने को कहा। एक तरह से हम उनके गारंटर बन गए। यहां हालात सच में ऐसे हो गए हैं। हमें स्थानीय यूनियन नेताओं के साथ बैंक के बाहर पूरे दिन बैठना पड़ता है, तभी वे अपने हेड ऑफिस से पैसा लाते हैं। बैंक कहते हैं कि उनके पास पैसा नहीं है।

सरकार ने मेहनताना सीधे मज़दूरों के खाते में ट्रांसफर करने को कहा है। मगर यह मुमकिन नहीं है क्योंकि सभी के पास खाते नहीं हैं। और उनके खाते खुलवाना आसान नहीं है। मैं तो कहती हूं, आप दार्जिलिंग को भूल जाएं। मैं दिल्ली में अपने मज़दूरों के खाते नहीं खुलवा सकती। और यह सब उस समय हो रहा है, जब चाय बाग़ानों की हालत पहले से ही ख़राब है।

आरबीआई बार-बार अपने नियम बदलता है। हर मिनट बाद घोषणा कर रहे हैं। पहले उन्होंने हमसे जिला मजिस्ट्रेट के खाते में जरूरत का सारा पैसा जमा कराने को कहा और कहा कि वे कैश रिलीज करेंगे। इलाके में 68 चाय बागान हैं, जिनमें से महज़ 38 बागान इस नियम से पैसा निकाल पाए। 

फिर एक हफ्ते बाद उन्होंने तय किया कि सभी चाय बागान मालिक एक सेट फार्मूला में पैसा देंगे- 1400 रुपए गुना 2.5 गुना जितने हैक्टेयर जमीन में अमुक चाय बागान है।

मुझे नहीं मालूम। आप ही आरबीआई से पूछें।

चाय तोड़ने का सीज़न खत्म हो रहा है। बहुत ही मुश्किल घड़ी है क्योंकि अगले सीजन के लिए खेतों को तैयार करने के लिए उनकी सफाई और नालियों की खुदाई करवानी है। अगर मज़दूरों को सैलरी नहीं मिलती है और वे भाग जाते हैं, तो यह काम नहीं हो सकेगा।

सिर्फ अगला सीजन ही नहीं, बल्कि पूरा आने वाला साल प्रभावित होगा।  सरकार मुझे अपना पैसा निकालने के लिए कैसे रोक सकती है? क्या यह गैरकानूनी नहीं है?

Bureau Report

 

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