नईदिल्ली: नोटबंदी के बाद कैशलेस ट्रांजेक्शन में 93 फीसदी से 4 हजार फीसदी तक इजाफा हुआ। इतनी बड़ी वृद्धि को देखते हुए सरकार अब डिजिटल ट्रांजेक्शन के सभी माध्यमों को साइबर हमले से बचाने के लिए सुरक्षित बना रही है। इसके लिए नेशनल साइबर कॉर्डिनेशन सेंटर (एनसीसीसी), मालवेयर एनालिय सेंटर और कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (सीईआरटी-इन) जैसी सरकारी एजेंसियां दिन रात एक साथ काम कर रही हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, ज्यादातर साइबर हमले मालवेयर से होते हैं, इसलिए डेस्कटॉप कंप्यूटर से किए ट्रांजेक्शन को मालवेयर व वायरस से सुरक्षित बनाया जा रहा है। उन मालवेयर की पहचान की जा रही है जो खतरनाक हैं। इसमें सरकारी संस्थाएं एथिकल हैकर्स की भी मदद ले रही हैं।
अभी हाल ही में आरबीआई ने बैंकों, एनसीसीसी और सीईआरटी-इन के साथ अहम बैठक की। इसमें इन एजेंसियों ने बैंकों को वायरस से बचने के तरीकें बताए हैं। आरबीआई ने बैंकों से साइबर हमलों से लेकर ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों पर रिपोर्ट भी मांगी। इस रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा में लगी एजेंसियां मालवेयर अटैक का अध्ययन करेंगी और फिर बैंकों को इनसे बचने के और भी कड़े उपाय बताए जाएंगे।
नोटबंदी से पहले सरकार ने डिजिटल इंडिया की मुहिम के तहत साइबर सुरक्षा के लिए एक हजार करोड़ रुपए के फंड को मंजूरी दी थी। इसी फंड का इस्तेमाल सुरक्षा से जुड़े शोध में किया जा रहा है। टीम का नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कर रहे हैं।
सरकार साइबर हमले में काम करने के लिए कानून में बदलाव की तैयारी कर रही है। सीबीआई, सूचना प्रसारण मंत्रालय, कानून और दूरसंचार मंत्रालय इस दिशा में साथ काम कर रहे हैं। माना जा रहा है कि बजट सत्र के बाद इस पर कैबिनेट के समक्ष रिपोर्ट रखी जाएगी। अभी कानूनों में सख्त कार्रवाई नहीं होती।
Bureau Report
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