क्या नीलाम होगा भारत का पहला व्यक्तिगत ओलिंपिक पदक, जानें क्या है वज़ह!

क्या नीलाम होगा भारत का पहला व्यक्तिगत ओलिंपिक पदक, जानें क्या है वज़ह!नईदिल्लीदेश का पहला ओलंपिक पदक नीलाम हो सकता है. इंडिया के लिए पहला ओलंपिक मेडल जीतने वाले गुमनाम हीरो केडी जाधव के बेटे ने महाराष्ट्र सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए उनके नाम पर एकेडमी बनाने के लिए उनका पदक नीलाम करने की बात कही है.

ये कदम उनके परिवार द्वारा एक रेसलिंग एकैडमी खोलने के लिए आ रही पैसे की कमी की वजह से किया जा रहा है. महाराष्ट्र सरकार ने जाधव के परिवार को इस एकैडमी के लिए पैसे देने का वादा किया था लेकिन फिर भी अब तक उन्हें एक भी पैसा नहीं मिला है.

इस महान पहलवान जाधव के बेटे रंजीत केडी जाधव ने कहा कि 65 साल पहले 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में उनके पिता ने बैंटमवेट फ्रीस्टाइल रेसलिंग में ब्रॉन्ज मेडल जीतते हुए इतिहास रचा था क्योंकि ये किसी भी भारतीय द्वारा ओलंपिक में जीता गया पहला व्यक्तिगत मेडल है.

रंजीत ने कहा, ‘तब से मेरे पिता का सपना हमारे गांव, गोलेश्वर (कराड, उप-जिला, सतारा जिला) में एक विश्व स्तरीय रेसलिंग एकैडमी की स्थापना करने का था, लेकिन लगातार प्रयास के बावजूद हम असफल हो गए हैं.’

उन्होंने कहा, ‘2009 में जलगांव में कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान महाराष्ट्र के तत्कालीन दिलीप देशमुख ने घोषणा की थी कि केडी जाधव के नाम पर सतारा जिले में नेशनल लेवल की रेसलिंग एकैडमी बनाई जाएगी. लेकिन 8 साल बाद भी कुछ नहीं हुआ. 2013 में इस परियोजना के लिए एक करोड़ 58 लाख रुपये मंजूर किए गए थे लेकिन ये परियोजना आकार नहीं ले पाई.’

रंजीत ने कहा, ‘हमने राज्य सरकार को 14 अगस्त का अल्टीमेटम दिया है-जोकि मेरे पिता की 33 वीं बरसी है-इसी दिन 1984 में 58 साल की उम्र में केडी जाधव का निधन हुआ था. अगर वे एकैडमी के लिए किए गए अपने वादे को निभाने में असफल रहते हैं तो 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन से उनका परिवार और गांव वाले भूख हड़ताल करेंगे.’

जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में महज 27 साल की उम्र में कुश्ती में भारत के लिए पहला व्यक्तिगत मेडल जीता था. उनके बेटे रंजीत का कहना है कि केडी जाधव बहुत ही अंतर्मुखी व्यक्ति थे और उन्होंने कभी भी अपनी उपलब्धियों का बखान नहीं किया. वह 1984 तक जीवित रहे लेकिन सरकार ने उनके जीते जी उन्हें अर्जुन पुरस्कार तक नहीं दिया. उन्हें अर्जुन पुरस्कार उनकी मृत्यु के 16 साल बाद दिया गया.

रंजीत ने यह भी आरोप लगाया है कि 1997 में दादासाहब के नाम पर जो नेशनल चैंपियनशिप शुरू की थी, 2015 से उसे बंद कर दिया गया.रंजीत फिर से वह चैंपियनशिप शुरू करना चाहते हैं. दादासाहब जाधव ने 1948 में पहली बार ओलिंपिक में हिस्सा लिया तब कोल्हापुर के महाराजा ने उनकी लंदन यात्रा का खर्चा उठाया था.

Bureau Report

 

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