नोबेल कमेटी ने लियू शियाओबो के निधन के लिए चीन को बताया ‘भारी ज़िम्मेदार’

नोबेल कमेटी ने लियू शियाओबो के निधन के लिए चीन को बताया 'भारी ज़िम्मेदार'ओस्लो नोर्वे की नोबेल समिति ने गुरुवार (13 जुलाई) को कहा कि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लियू शियाओबो के ‘समयपूर्व’ निधन के लिए चीन की ‘भारी जिम्मेदारी’ बनती है. बता दें कि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और चीन सरकार के मुखर विरोधी लियू शियाओबो का 61 साल की उम्र में गुरुवार (13 जुलाई) को निधन हो गया. जीवन के आखिरी पल तक वह हिरासत में थे और चीन सरकार ने उनको रिहा करने और विदेश जाने देने के अंतरराष्ट्रीय आग्रह की उपेक्षा की थी.

नोबेले समिति ने उठाए चीन की भूमिका को लेकर सवाल

नोबेल समिति के प्रमुख बेरिट रेस एंडरसन ने एक बयान में कहा, ‘हम इसे काफी परेशान करने वाला पाते हैं कि लियू शियाओबो को उस जगह नहीं भेजा गया जहां उनको उचित उपचार मिल सकता था. उनके समयपूर्व निधन के लिए चीन की सरकार की भारी जिम्मेदारी बनती है.’

मानवाधिकार आंदोलन ने एक सिद्धांतवादी योद्धा खोया : संयुक्त राष्ट्र

उधर, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख जैद राद अल हुसैन ने शियाओबो के निधन पर दुख प्रकट करते हुए बयान में कहा, ‘चीन और दुनिया भर में मानवाधिकार आंदोलन ने एक सिद्धांतवादी योद्धा खो दिया है जिसने अपना पूरा जीवन मानवाधिकार की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने में लगा दिया.’

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और चीन सरकार के मुखर विरोधी लियू शियाओबो का 61 साल की उम्र में गुरुवार (13 जुलाई) को निधन हो गया. जीवन के आखिरी पल तक वह हिरासत में थे और चीन सरकार ने उनको रिहा करने और विदेश जाने देने के अंतरराष्ट्रीय आग्रह की उपेक्षा की थी.

लोकतंत्र के प्रबल समर्थक शियाओबो कैंसर से जूझ रहे थे और एक महीने पहले उनको कारागार से अस्पताल में स्थानांतरित किया गया था. शेनयांग शहर के विधि ब्यूरो ने उनके निधन की पुष्टि की है. वह इसी शहर के एक ‘फर्स्ट हास्पिटल ऑफ चाइना मेडिकल यूनिवर्सिटी’ के गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती थे.

इस लेखक के निधन के साथ ही चीन की सरकार की आलोचना करने वाली आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई. वह कई दशकों से चीन में विरोध के प्रतीक बने हुए थे. शियाओबो दूसरे ऐसे नोबेल शांति पुरस्कार विजेता बन गए हैं जिनका हिरासत में निधन हुआ. इससे पहले 1938 में जर्मनी में नाजी शासन के दौरान कार्ल वोनल ओसीत्जकी का निधन एक अस्पताल में हुआ था और वह भी हिरासत में थे.

पिछले साल मई में शियाओबो के कैंसर की चपेट में आने का पता चला था और इसके बाद मेडिकल पैरोल दे दी गई थी. शियाओबो को 2008 में ‘चार्टर08’ के सह-लेखन की वजह से गिरफ्तार किया गया था. ‘चार्टर-8’ एक याचिका थी जिसमें चीन में मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा करने और राजनीतिक व्यवस्था में सुधार का आह्वान किया गया था.

दिसंबर, 2009 में उनको 11 साल की सजा सुनाई गई थी. साल 2010 में उनको शांति का नोबेल मिला. नोबेल पुरस्कार समारोह में उनकी कुर्सी खाली छोड़ दी गई थी. उनको बीजिंग में 1989 में थेनआनमन चौक के प्रदर्शनों में भूमिका के लिए भी जाना जाता है. शियाओबो की पत्नी लियू शिया को साल 2010 में नजरबंद कर दिया गया था, लेकिन उन्हें अस्पताल में पति को देखने की इजाजत दी गई थी.

Bureau Report

 

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