नईदिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गुरूवार को कहा कि एलजीबीटी समुदाय के लोगों के निजता के अधिकारों को सिर्फ इसलिए नहीं नकारा जा सकता कि उनका गैरपारंपरिक यौन रूझान है और 1.32 अरब की आबादी वाले देश में उनकी संख्या बहुत कम है. निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताने वाली नौ सदस्यीय पीठ ने सर्वोच्च अदालत के एक पुराने फैसले के संदर्भ में यह टिप्पणी की. दरअसल, एलजीबीटी समुदाय की ओर से एक एनजीओ ने अपील दायर की थी.
भेदभाव गरिमा पर गहरा आघात
प्रधान न्यायाधीश न्यायमर्ति जे एस खेहर, न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल, न्यायमूर्ति एस ए नजीर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूण ने कहा कि यौन रूझान के आधार पर भेदभाव किसी व्यक्ति की गरिमा पर गहरा आघात है. उन्होंने कहा, ‘‘ समलैंगिक, गे, बायसेक्सुअल या ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) देश की आबादी की बहुत ही छोटा हिस्सा है और यह निजता के अधिकार को नकारने का आधार नहीं बनता है.’’
Bureau Report
Leave a Reply