नईदिल्ली: केंद्रीय खाद्यमंत्री रामविलास पासवान का कहना है कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार अध्यादेश लाएगी और अगर जरूरत पड़ी तो संविधान में भी संशोधन किया जाएगा. पासवान ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय अगर एससी-एसटी कानून के तहत दलितों पर अत्याचार के आरोपों की शिकायत करने पर आरोपी को तत्काल गिरफ्तार किए जाने के प्रावाधानों को हटाने संबंधी अपने फैसले को वापस नहीं लेगा तो सरकार उक्त प्रावधानों को कायम रखने के लिए अध्यादेश लाएगी. उन्होंने यह स्वीकार किया कि दलित के मसले पर सरकार में समझ की समस्या थी मगर यह अनुभव किया गया कि इसे अविलंब दुरुस्त किया जा सकता है बशर्ते पर्याप्त कदम उठाए जाएं.
केंद्र ने कहा, अध्यादेश लाएंगे
पासवान ने एक साक्षात्कार में कहा, “सरकार की दलित विरोधी धारण दो दिन में बदल सकती है. अदालत में इस मसले पर तीन मई को सुनवाई होगी. मैंने कहा है कि अगर अदालत का आदेश पक्ष (मूल प्रावधानों को कायम रखने के पक्ष) में नहीं आया तो हम (सरकार) अध्यादेश लाएंगे, जिसमें एससीएसटी कानून के मूल प्रावधान में बिना किसी परिवर्तन के लाया जाएगा.”
कानून को कमजोर नहीं होने देंगे
पासवान से जब यह पूछा गया कि क्या सरकार अदालत के आदेश को निष्प्रभावी कर देगी तो इस पर उन्होंने कहा, “हां, हम किसी भी कीमत पर कानून को कमजोर नहीं होने देंगे. अधिनियम से अल्प विराम व पूर्ण विराम के संकेत भी नहीं हटाये जाएंगे (मतलब कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा). अधिनियम अपने मूल रूप में ही रहेगा. एससी-एसटी अधिकारों की रक्षा के लिए जो भी जरूरत होगी हम वो सब करेंगे. जरूरत पड़ेगी तो हम संविधान में भी संशोधन लाएंगे.”
राजग सरकार ने दायर किया रिव्यू पिटीशन
राजग सरकार में दलित चेहरे के रूप में शुमार पासवान मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 20 मार्च के फैसले के खिलाफ सरकार पर शीर्ष अदालत में पुनरीक्षण याचिका दायर करने के लिए दवाब बनाने वाले अभियान के अगुवा रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि एससी-एसटी के सदस्य द्वारा प्राथमिकी दर्ज किए जाने पर किसी सरकारी अधिकारी या आम नागरिक को तत्काल गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिनियम के तहत गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है और प्रतिरोधी कार्रवाई प्रारंभिक जांच व सक्षम अधिकारी की अनुमति के बाद ही की जानी चाहिए. अदालत ने कहा कि शिकायत दर्ज किए जाने के बाद पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी की मंजूरी के बाद ही मामले में गिरफ्तारी की जानी चाहिए. सरकार ने आदेश पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए इसी महीने एक पुनरीक्षण याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने उसपर यह कहते हुए कोई राहत देने से मना कर दिया कि आदेश को गलत समझा गया है.
प्रोन्नति में आरक्षण का मसला
पासवान इस मामले को लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में गठित मंत्रिसमूह के प्रमुख सदस्य हैं. उन्होंने कहा कि सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों की सेवा में प्रोन्नति में आरक्षण के मसले पर भी सरकार का ऐसा ही रुख है. उन्होंने कहा, “प्रोन्नति में आरक्षण के मसले पर भी हमारा यही रुख है. इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह नहीं कहा है कि प्रोन्नति में आरक्षण असंवैधानिक है, लेकिन पिछड़ापन, क्षमता और प्रतिनिधित्व की तीन शर्तें लगा दी हैं.”
अध्यादेश लाने से नहीं हिचकेगी केंद्र
पासवान ने कहा, “ये तीनों शर्तें लागू नहीं होती हैं. एससी-एसटी समुदाय के किसी प्रथम श्रेणी के अधिकारी पर कोई यह आरोप नहीं लगा सकता है कि वह सक्षम नहीं है. मैंने महान्यायवादी को अदालत जाने और इन बिंदुओं को रखने को कहा है. अगर अदालत इससे सहमत नहीं होगी तो हम अध्यादेश लाने से नहीं हिचकेंगे. अगर जरूरत पड़ेगी तो हम संविधान में संशोधन लाएंगे.”
पासवान 80 के दशक के उत्तरार्ध में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रबल समर्थक थे. उन्होंने बताया कि कानून मंत्री एक या दो दिन में महान्यायवादी से इस मसले पर विचार-विमर्श करेंगे. पासवान ने कहा, “इस मसले को लेकर अन्य सांसदों के साथ मैंने प्रधानमंत्री से मुलकात की. राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में मंत्रिसमूह की बैठक में मैंने अपनी चिंता जाहिर की है.”
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