नईदिल्ली: दिल्ली में उपराज्यपाल बनाम केजरीवाल सरकार के बीच अधिकारों को लेकर चल रहे टकराव के मसले पर सुप्रीम कोर्ट चार जुलाई को अहम फैसला सुनाने वाला है. इस बीच आप सरकार ने एक बार फिर से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग भी शुरू कर दी है. इस पृष्ठभूमि में यह जानना जरूरी है कि दिल्ली फिलहाल आंशिक राज्य है. इसके संबंध में विशेष संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं. यहीं से बड़ा सवाल उठता है कि आखिर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिया गया है? इस संबंध में कुछ खास बातों पर रोशनी डालना जरूरी है:
1.दिल्ली देश की राजधानी है और पूरे देश का शासन दिल्ली से ही चलता है. शासन और सुरक्षा की दृष्टि से दिल्ली देश की सबसे महत्वपूर्ण जगह है.
3. इन अति-महत्वपूर्ण व्यक्तियों और जगहों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत सरकार किसी दूसरे राज्य पर नहीं छोड़ सकती क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है. इसलिए पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के मामलों को केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा.
4. इसके अलावा जो भी मामले हैं वो दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं पर उनमें भी दिल्ली के संवैधानिक प्रमुख यानी उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी है…जो दिल्ली के स्पेशल स्टेटस को देखते हुए उचित भी है. मसलन, कल दिल्ली सरकार राष्ट्रपति भवन या प्रधानमंत्री आवास या फिर केंद्र सरकार के दूसरे मंत्रालयों की बिजली-पानी सप्लाई बंद कर दे तो फिर क्या होगा?
5. इसी तरह अगर दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन यूनिट को ये अधिकार मिल जाए कि वो किसी को भी गिरफ्तार कर ले और किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री या मंत्री या फिर केंद्रीय मंत्री को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया जाए तो फिर क्या होगा?
6. इसी तरह अगर किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को दिल्ली का मुख्यमंत्री दिल्ली में उतरने की अनुमति ही ना दे, या फिर विदेशी दूतावास के अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई करने लगे तो फिर क्या होगा?
7. पूर्ण बहुमत का सहारा लेकर अगर देश के किसी राज्य की कोई भी विधानसभा केंद्र सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने लगे या कल को ये कहे कि उसे भारत सरकार के साथ रहना ही नहीं है…तो फिर क्या होगा? इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 239-एए के तहत दिल्ली के संबंध में विशेष उपाए किए गए.
2. इस अनुच्छेद का Clause 4 कहता है कि दिल्ली की मंत्रिपरिषद उपराज्यपाल को aid and advise यानी मदद और सलाह देगी बशर्ते ऐसा कोई मामला सामने आए नहीं तो उपराज्यपाल ख़ुद फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं.
3. नियम कहते हैं कि अगर उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद में मतभेद हों, तो मामला राष्ट्रपति के पास भेजना चाहिए.
4. जब तक ये मामला राष्ट्रपति के पास लंबित होता है, तब तक उपराज्यपाल के पास अधिकार होता है कि वो अपने विवेक से किसी भी तात्कालिक मामले में तुरंत कार्रवाई कर सकते हैं.
1991 का संविधान संशोधन
1. दिल्ली एक आंशिक राज्य है, यह पूर्ण राज्य नहीं है. 1991 में संविधान में संशोधन से दिल्ली को विशिष्ट संवैधानिक दर्जा और विधानसभा मिली थी.
2. संविधान के हिसाब से दिल्ली के प्रमुख उपराज्यपाल हैं. 1993 से दिल्ली में जो भी सरकार बनी, उसमें से किसी ने भी उपराज्यपाल की शक्तियों को चुनौती नहीं दी. दिल्ली की चुनी हुई सरकार को उपराज्यपाल के साथ अपनी शक्तियों को शेयर करना ही पड़ता है.
3. दिल्ली जैसे आंशिक राज्य के मुकाबले दूसरे पूर्ण राज्यों में राज्यपाल होते हैं जो राज्य की मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करते हैं…लेकिन दिल्ली की स्थिति अलग है.
Bureau Report
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