विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर द्वारा LAC मुद्दे पर दिए बयान के बाद से सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने जुबानी हमले तेज कर दिए हैं। इसी क्रम में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी विदेश मंत्री एस जयशंकर पर हमला बोला है। उन्होंने जयशंकर के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर किए गए दावों को ‘धोखा और झांसा’ बताया। ओवैसी ने विदेश मंत्री से सवाल किया कि अगर सरकार के पास कुछ भी छुपा नहीं है तो वह संसद में बहस से भाग क्यों रही है?
चीन के मुद्दे पर मेरे सवालों का खंडन क्यों किया जा रहा?
ओवैसी ने अपने सिलसिलेवार ट्वीट में लिखा कि अगर चीन सीमा संकट पर सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है, तो विदेश मंत्री एस जयशंकर, संसद में बहस और चर्चा से क्यों भाग रहे हैं? इस विषय पर मेरे सवालों का खंडन क्यों किया जा रहा है? मीडिया को वहां क्यों नहीं ले जाया जा रहा है? जयशंकर के तर्क को हास्यास्पद और अप्रासंगिक करार देते हुए ओवैसी ने कहा कि जयशंकर पीएम की ‘न कोई घुसा था न कोई घुसा है..’ की लाइन पर चल रहे हैं।
सरकार ने लद्दाख में क्षेत्र का नियंत्रण खो दिया है: ओवैसी
ओवैसी ने एक और ट्वीट में लिखा कि सरकार ने लद्दाख में क्षेत्र का नियंत्रण खो दिया है और तीन साल पहले की यथास्थिति को बहाल करने में विफल रही है। क्या यह कम से कम सरकार से अपेक्षित नहीं है? वे चीन से डेपसांग और डेमचोक पर चर्चा भी नहीं करवा सकते हैं।
मोदी सरकार सच्चाई से डरती है: ओवैसी
ओवैसी ने कहा कि सरकार सच्चाई से डरती है चाहे वह “चीन के साथ लद्दाख संकट” के गुजरात दंगों पर हो। “विदेश मंत्री की धौंस और झांसा चीन के साथ सीमा संकट को हल नहीं करेगा। इसे ईमानदारी और सच्चाई को स्वीकार करने की इच्छा की आवश्यकता है। मंत्री ने आज फिर दिखाया है कि मोदी सरकार सच्चाई से डरती है, चाहे 2002 के गुजरात नरसंहार पर या फिर चीन के साथ लद्दाख संकट हो।
जानें LAC पर विदेश मंत्री ने ऐसा क्या कहा जो हो रहा विवाद
विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने बीते मंगलवार को समाचार एजेंसी एएनआई को दिए साक्षात्कार में कहा कि भारत सरकार रक्षात्मक है, उदार होने के नाते … भारतीय सेना को एलएसी पर किसने भेजा? राहुल गांधी ने उन्हें नहीं भेजा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भेजा। कुछ पश्चिमी मीडिया और गैर सरकारी संगठनों द्वारा भारत विरोधी बयानों पर विदेश मंत्री ने कहा कि वे (चीन) पैंगोंग त्सो में पुल बना रहे थे। वह क्षेत्र चीन के अधीन कब आया? चीनी पहली बार 1958 में वहां आए और 1962 में कब्जा कर लिया। मोदी सरकार को 2023 में एक पुल के निर्माण के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, जो 1962 में कब्जा कर लिया गया था? आपके पास यह कहने के लिए ईमानदारी नहीं है कि यह कब हुआ?
Bureau Report
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