नईदिल्ली: कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली-हरियाणा और यूपी बॉर्डर पर चल रहा आंदोलन आठवें माह में प्रवेश करने वाला है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन को राजनीति से दूर रखने की बात कही जाती है, लेकिन आंदोलन राजनीति से अछूता नहीं है। क्योंकि अकसर राजनीतिक बात करने वाले भाकियू नेता राकेश टिकैत पर अब तक मोर्चा ने एक बार भी कोई कार्रवाई नहीं की और न ही उनको लेकर कोई बयान ही दिया है।
दरअसल, गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने मिशन पंजाब के तहत चुनाव में किसान संगठनों को उतरने की सलाह दी थी। उनके इस बयान को राजनीतिक व चुनावी बयानबाजी करार देते हुए संयुक्त मोर्चा ने उन्हें सात दिन के लिए निलंबित कर दिया। हालांकि आंदोलन में राजनीतिक बयानबाजी पहली बार नहीं हुई है। संयुक्त किसान मोर्चा के अहम सदस्य और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत अकसर ऐसी बयानबाजी करते रहे हैं। उन्होंने कहा था कि कश्मीर में धारा-370 हटने के बाद से किसान परेशान हैं। यही नहीं, मोर्चा के ऐलान के बावजूद उनके साथ रालोद के जयंती चौधरी, इनेलो के अभय चौटाला जैसे नेता मंच सांझा कर चुके हैं। इसके अलावा वे खेतों में फसलों को आग लगाने जैसे विवादित बयान भी देते रहे हैं, लेकिन अब तक उनपर कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई और न ही मोर्चा की ओर से उनके खिलाफ कोई बयान ही दिया गया।
गुरनाम सिंह चढ़ूनी के बोल
गुरनाम चढ़ूनी ने एक वीडियो जारी कर कहा था कि भाजपा को हराने से व्यवस्था नहीं बदलेगी। बंगाल में भाजपा को हरा दिया तो क्या हमारी बातें मानी गईं। अन्य राज्यों में भी हरा देंगे तो क्या गारंटी है कि हमारी बात मानी जाए। आंदोलन की बात करते हुए उन्होंने कहा कि साढ़े सात महीने में क्या किसी विपक्षी दल का बयान आया कि यदि उनकी सत्ता आई तो वे इन कानूनों को समाप्त कर देंगे और एमएसपी गारंटी का कानून बनाएंगे। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हरियाणा में 1994 में भजनलाल की सरकार थी, उन्होंने गोलियां चलवाई, हमने उसकी जड़ें उखाड़ दीं। फिर बंसीलाल की सरकार आई, कोई काम किसानों के लिए नहीं किया, सतनाली कांड हुआ। हमने उन्हें भी सत्ता से बाहर कर दिया। इसका फायदा ओमप्रकाश चौटाला को हुआ। सत्ता में आए, लेकिन उन्होंने भी किसानों की बात नहीं मानी। उन्होंने कहा कि हमारी सोच नेगेटिव है कि इसको हराना है। हमें किसको बनाना है, यह नहीं सोच रहे। व्यवस्था परिवर्तन चाहिए तो हमें योजना बनानी होगी। पंजाब के संगठन इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका में हैं। अगर वे चुनाव में उतर जाएं और सत्ता अपने हाथ में ले लें तो एक मॉडल तैयार होगा.
Bureau Report
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