नईदिल्लीः बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री शबाना आजमी ने सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी के कामकाज पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि भारत में फिल्मों के सर्टिफिकेशन के लिए जो प्रोसेस अपनाया जा रहा है वह सही नहीं है. उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानि सीएफसीबी का काम फिल्मों को सेंसर करना (काट-छांट करना) नहीं, बल्कि उसे वर्गीकृत करना है.
बच्चों के लिए बनाई गई थी ‘जग्गा जासूस‘ लेकिन सेंसर बोर्ड से मिला U/A सर्टिफिकेट
अपनी फिल्म ‘द ब्लैक प्रिंस’ के प्रीमियर पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में मौजूदा शबाना ने विवादों से घिरे सेंसर बोर्ड का जिक्र करने पर कहा कि ये बोर्ड फिल्म सर्टिफिकेशन का बोर्ड है, इसका नाम सेंसर बोर्ड नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसे सेंसर (काट-छांट करना) करने के लिए नहीं, बल्कि फिल्मों को वर्गीकृत करने के लिए बनाया गया है. इसके तहत बोर्ड यह निर्णय करता है कि किस फिल्म को कौन सा वर्ग (कैटगरी) दिया जाना चाहिए.
अंग्रेजों के जमाने की है सर्टिफिकेशन प्रक्रिया
शबाना ने कहा कि हम जिस प्रक्रिया का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह ब्रिटिश प्रक्रिया है. इसके तहत कुछ लोगों को चुनकर बोर्ड में बैठा दिया जाता है और वे 30-35 लोग मिलकर तय करते हैं कि हमारी फिल्मों में क्या नैतिकता होनी चाहिए. इनमें अक्सर अधिकांश वे लोग होते हैं, जिनका मौजूदा सरकार की ओर रुझान ज्यादा रहता है. फिर वह चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की. मुझे लगता है कि यह प्रक्रिया सही नहीं है.
अमेरिका की तरह होनी चाहिए फिल्म सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया
शबाना आजमी ने कहा कि हमें फिल्म प्रमाणन के लिए अमेरिकी प्रक्रिया अपनानी चाहिए. वहां का बोर्ड फिल्म उद्योग के लोगों का है और वहां सबकुछ फिल्मकार ही मिलकर तय करते हैं. वे फिल्म को देखने के बाद आपस में विचार-विमर्श करते हैं कि कौन सी फिल्म हर इंसान के देखने लायक है, कौन से दृश्य बच्चों के लिए सही नहीं हैं. इसलिए फिल्म के इन-इन हिस्सों पर कट्स लगाने चाहिए.
श्याम बेनेगल समिति की सिफारिशें लागू करे सरकार
फिल्म प्रमाणन प्रक्रिया में सुधार की जरूरत पर शबाना ने कहा कि अभी जो श्याम बेनेगल समिति बनी थी, उन्होंने भी यही बात कही है, जो मैंने आपसे फिल्म प्रमाणन पर कही. इससे पहले फिल्म प्रमाणन के लिए जस्टिस मग्गल समिति बनी थी, जिसने 40 स्थानों पर जाकर अलग-अलग तरह के लोगों से राय ली थी. मैं इस बात का इंतजार कर रही हूं कि सरकार ने जो श्याम बेनेगल समिति को बिठाया था और उन्होंने जो सिफारिशें की थीं, उनको तुरंत लागू किया जाये.
फिल्मों पर हावी हो रही है राजनीति
मौजूदा समय में फिल्मों पर हावी होती जा रही राजनीति से फिल्म निर्माण और फिल्मकारों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? इस सवाल पर शबाना ने कहा कि हमें इसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए और मैं मीडिया से भी कहूंगी कि आप थोड़ा सा सहज तरीके से इस बात को आगे ले जायें. अगर 10 लोग इकट्ठा होकर कहते हैं कि हमें यह चीज तकलीफ पहुंचा रही है या उसने हमारी भावना को ठेस पहुंचायी, तो बजाय मीडिया को अपना कैमरा उठाकर उनके पास दौड़ने के, पहले यह सोचना चाहिए कि ये कौन लोग हैं? समाज में इनका क्या स्थान है या फिर ये वे लोग हैं जो कुछ समय चर्चा में रहने के लिए यह बात कह रहे हैं, इसलिए मीडिया के लोगों को थोड़ी एहतियात बरतनी चाहिए.
Bureau Report
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