सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या महिलाओं को तीन तलाक को ना कहने का अधिकार दिया जा सकता है

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या महिलाओं को तीन तलाक को ना कहने का अधिकार दिया जा सकता हैनईदिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या महिलाओं को निकाह के लिए अपनी सहमति देने से पहले यह अधिकार दिया जा सकता है कि तीन तलाक से शादी तोडऩे को वह नकार दे।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने अनुशंसा की कि निकाहनामे में यह शर्त जोड़ी जा सकती है कि शौहर तीन तलाक देकर शादी नहीं तोड़ सकता।

पीठ ने एआईएमपीएलबी से पूछा कि क्या यह संभव है और क्या काजी उनकी अनुशंसा पर अमल करेंगे? प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आप इस विकल्प को निकाहनामा में शामिल कर सकते हैं और महिलाओं को निकाह के लिए सहमति देने से पहले तीन तलाक को नामंजूर करने का अधिकार दे सकते हैं। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ हातिम मुछल ने कहा कि काजी एआईएमपीएलबी की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।

हालांकि, मुछल ने हाल ही में लखनऊ में हुए एआईएमपीएलबी के सम्मेलन में पारित एक प्रस्ताव का जिक्र किया, जिसमें बोर्ड ने समुदाय से तत्काल तीन तलाक से अपनी शादी खत्म करने वाले पुरुषों का बहिष्कार करने को कहा। यह सम्मेलन 14 अप्रैल, 2017 को हुआ था। अधिवक्ता ने कहा कि वे अदालत की अनुशंसा पर विचार करेंगे। 

केंद्र ने कहा – लाएंगे नया कानून

इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह समय की कमी के कारण सिर्फ  तीन तलाक के मुद्दे पर ही सुनवाई करेगी। हालांकि कोर्ट ने कहा कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे पर भी सुनवाई का रास्ता भविष्य के लिए खुला है। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि अगर शीर्ष अदालत तीन तलाक सहित तलाक के सभी तरीकों को निरस्तर कर देती है तो मुस्लिम समाज में शादी और तलाक के नियमन के लिए नया कानून लाया जाया जाएगा।

केंद्र ने यह भी आग्रह किया कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दों को मौजूदा सुनवाई से अलग नहीं किया जाना चाहिए। इस पर सर्वोच्च अदालत ने भरोसा दिया कि ये सभी पहलू अपनी जगह मौजूद हैं और इन पर बाद में गौर किया जाएगा।

 

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