डोकलाम का असर दोनों सेनाओं ने परंपरागत मीटिंग नहीं की.

डोकलाम का असर दोनों सेनाओं ने परंपरागत मीटिंग नहीं की.नईदिल्‍ली:  भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद भले ही थम हो गया हो लेकिन इसका असर अभी भी दोनों देशों की सेनाओं पर दिख रहा है. दरअसल रविवार को चीन के 68वें राष्‍ट्रीय दिवस के मौके पर दोनों देशों की सेनाओं की हर साल होने वाली परंपरागत बैठक इस साल नहीं हो पाई. ये मीटिंग 4,057 किमी लंबी वास्‍तविक नियंत्रण रेखा से लगी पांच चुनिंदा जगहों पर होनी थी.  इस पर सूत्रों के हवाले से लिखा है कि पीपुल्‍स लिबरेशन आर्मी ने इस बार मीटिंग में शिरकत के लिए भारतीय सेना को निमंत्रण नहीं भेजा था. ये मीटिंग लद्दाख में दौलत बाग ओल्‍डी, अरुणाचल प्रदेश में चुशूल एवं बुम ला और सिक्किम के नाथू ला में होनी थी. 

सूत्रों के मुताबिक इस बार दोनों सेनाओं के बीच सातवीं वार्षिक ‘हैंड-इन-हैंड’ अभ्‍यास होने की दिशा में भी कोई प्रगति नहीं दिखाई देती. यह भी हर साल इसी महीने में आयोजित होती है. इस लिहाज से माना जा रहा है कि इस साल दोनों सेनाओं के बीच यह अभ्‍यास भी नहीं होगा. 

हालांकि डोकलाम विवाद के बाद चीन के राजदूत लूओ झाओहुई ने भारत के साथ पुराने विवाद को भूलते हुए दोस्‍ती की तरफ कदम बढ़ाने की बात कही है. पीपुल्‍स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की 68वीं वर्षगांठ पर बोलते चीनी राजदूत लूओ झाओहुई ने कहा ‘हमें पुराने विवादों को भूल कर नई दिशा की ओर कदम बढ़ाना चाहिए और जिससे दोनों देशों को फायदा होगा. चीन भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. हमने द्विपक्षीय स्तर पर बहुत प्रगति की है. साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में भी खासी प्रगति की है’. उन्होंने कहा कि इस महीने की शुरुआत में श्यामेन में ब्रिक्स सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और दोनों नेताओं ने ‘मिलाप’ और ‘सहयोग’ का साफ संदेश दिया था.

उनकी यह टिप्पणी डोकलाम गतिरोध की पृष्ठभूमि में आई है. उन्‍होंने कहा कि चीन भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. शुरू से ही भारत और चीन के बीच क्षेत्रीय विवाद होता रहा है, जिसमें डोकलाम विवाद पर दोनों सेनाओं के बीच दो महीने से ज्यादा वक्त तक गतिरोध बना था.

Bureau Report

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