किसान आंदोलन किस दिशा में जा रहा है? जानिए कितने मुद्दों पर है सरकार से तकरार?

किसान आंदोलन किस दिशा में जा रहा है? जानिए कितने मुद्दों पर है सरकार से तकरार?नईदिल्ली: कल सरकार के साथ बैठक के बीच किसानों के स्वाभिमान की तस्वीर सामने आई. विज्ञान भवन में कल किसानों और सरकार के बीच करीब साढ़े 7 घंटे तक बातचीत हुई, ये दोनों पक्षों के बीच एक हफ्ते में हुई दूसरी बातचीत थी. लेकिन इस बातचीत का भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस बैठक के दौरान किसानों ने न तो सरकार का दिया हुआ खाना खाया और न ही चाय पी. वो अपने साथ खाना लेकर गए थे और किसानों ने चाय भी गुरुद्वारे से मंगाकर पी. ये किसानों के स्वाभिमान की रोटी और चाय थी और इसी रोटी की कीमत सरकार और देश के लोगों को बताने के लिए ही किसान ये आंदोलन कर रहे हैं.

ये किसानों की खुद्दारी है. वो सरकार के साथ बैठक में अपना खाना भी अपने साथ लेकर आते हैं और चाय भी गुरुद्वारे से मंगाकर पीते हैं.

पहले राउंड की बातचीत के दौरान भी किसानों ने सरकार की चाय पीने से इनकार कर दिया था और कहा था कि सिंघु बॉर्डर पर खीर तैयार है और अगर सरकार के प्रतिनिधि चाहें तो किसानों के साथ बैठकर खीर खा सकते हैं.

जब कोई किसान कड़ी धूप में परिश्रम करता है और अन्न उगाता है तभी राजा से लेकर प्रजा तक की थाली में भोजन पहुंच पाता है. इसलिए अगर आप भी इस समय खाना खा रहे हैं तो सबसे पहले इन किसानों को धन्यवाद कहिए. इस समय जो भोजन आपको मिल रहा है वो किसानों ने कड़ी मेहनत करके आपके लिए उगाया है. शायद भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश होगा जो देश के सबसे अमीर व्यक्ति को भी अनाज वाली सब्सिडी देता है. इसलिए अब समय आ गया है कि किसानों को हमारी सरकारें वोट बैंक मानना बंद करें और गंभीरता से उनकी समस्याओं का समाधान करें.

इस समय किसानों की सबसे बड़ी समस्या नए कृषि कानून हैं और अफसोस इसका समाधान कल भी नहीं मिल पाया.

5 दिसंबर को पांचवें राउंड की बातचीत
साढ़े 7 घंटे तक चली बैठक बेनतीजा रही. यानी इसमें भी सरकार और किसानों के बीच कोई समझौता नहीं हो पाया. ये एक हफ्ते में किसानों और सरकार के बीच हुई दूसरी बैठक थी. लेकिन कुल मिलाकर अब तक दोनों पक्षों के बीच चार राउंड की बातचीत हो चुकी है. अब 5 दिसंबर को दोपहर 2 बजे पांचवें राउंड की बातचीत होगी.

सरकार के साथ बातचीत में 40 से ज्यादा किसान संगठनों ने हिस्सा लिया, पिछली बैठक में ये संख्या 35 थी, जबकि सरकार की तरफ से इस बार भी बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेल मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने हिस्सा लिया. इस बैठक में सरकार ने किसानों को भरोसा दिलाया है कि MSP की व्यवस्था थी, ये व्यवस्था है और ये आगे भी रहेगी.

सरकार APMC को समाप्त नहीं करेगी
इसके अलावा सरकार ने ये भी कहा है कि सरकार APMC को समाप्त नहीं करेगी, बल्कि मजबूत करेगी. सरकार अहंकार में नहीं है बल्कि वो किसानों की आशंकाओं का समाधान करना चाहती है.

किसान सरकारी मंडियों के बाहर जो भी अनाज बेचेंगे. उसमें भी किसानों के हितों का ख्याल रखा जाएगा. किसानों से फसल खरीदने वालों का रजिस्ट्रेशन होगा, पैन कार्ड का इस्तेमाल होगा और सरकार सुनिश्चित करेगी कि दोनों जगह लगने वाले टैक्स में कोई अंतर न हो.

किसानों को चिंता है कि अगर फसल खरीदने वालों से उनका कोई विवाद होता है तो नए कानून के मुताबिक इसकी सुनवाई SDM कोर्ट करेगा ऐसे में उन्हें न्याय नहीं मिल पाएगा. किसान चाहते हैं कि किसी भी विवाद पर सामान्य अदालत फैसला सुनाए. सरकार इस आशंका को दूर करने पर भी विचार कर रही है. 

ज़मीन को लेकर कोई सौदा नहीं कर सकता
किसानों को ये भी आशंका है कि नए कानूनों की वजह से बड़ी बड़ी कंपनियां किसानों की ज़मीनों पर कब्जा कर लेंगी. हालांकि कानून में इस बात का उल्लेख है कि कोई भी खरीदार किसानों के साथ ज़मीन को लेकर कोई सौदा नहीं कर सकता. लेकिन फिर भी सरकार किसानों की इस आशंका को समय रहते दूर कर देगी.

इसके अलावा पराली और बिजली से जुड़ी किसानों की चिंताओं को भी सरकार जल्द दूर करने का प्रयास करेगी.

इस बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं.

कुछ बिंदुओं पर किसानों के साथ सहमति बन गई है
सरकार का कहना है कि कुछ बिंदुओं पर किसानों के साथ सहमति बन गई है. लेकिन किसान अभी आंदोलन वापस लेने के लिए तैयार नहीं हैं.

कुल मिलाकर स्थिति ये है कि किसान, कानून में किसी भी प्रकार के संशोधन पर सहमत नहीं हैं उनका कहना है कि तीनों कानून वापस लिए जाने चाहिए.

अब किसान संगठन आज एक आपात बैठक करेंगे और इसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी.

हालांकि किसानों ने भी माना है कि कुछ बात आगे बढ़ी हैं. लेकिन अभी किसान अपना आंदोलन वापस लेने के मूड में नहीं हैं. 

किसानों और सरकार के बीच बैठक कल दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर शुरू हुई. शुरुआत किसान नेताओं के बोलने से हुई और किसान नेताओं ने तीनों कानूनों की खामियां गिनाई.

बीच में सरकार की तरफ से किसान नेताओं के भ्रम को दूर करने की कोशिश की गई लेकिन अधिकतर किसान नेताओं के तेवर तीखे थे जिसके बाद सरकार की तरफ से कहा गया कि पहले आप सब अपनी अपनी बात कह लीजिए.

इसके बाद फिर से किसान नेताओं ने बोलना शुरू किया. अधिकतर किसान नेता कानूनों की Clause By Clause कमियां गिनाने के बजाय यही मांग कर रहे थे कि तीनों ही कानूनों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इनको रद्द किया जाए.

दोपहर दो बजकर 45 मिनट पर लंच ब्रेक हुआ और करीब डेढ़ घंटे के ब्रेक के बाद फिर से दूसरे दौर की बातचीत शुरू हो गई.

कई बार किसान नेताओं की तरफ से आपत्ति दर्ज कराई गई
शाम सवा चार बजे फिर से बातचीत शुरू हुई. किसान नेताओं ने जो बातें रखी थीं, सरकार ने एक एक करके उनके जवाब देने शुरू किए. कृषि सचिव ने कानूनों को लेकर किसानों की गलतफहमियां दूर करने की कोशिश की. हालांकि कृषि सचिव के जवाब के दौरान कई बार किसान नेताओं की तरफ से आपत्ति दर्ज कराई गई.

सरकार की तरफ से अधिकारियों ने हर आशंका को दूर करने की कोशिश की और किसानों के हर सवाल का जवाब देने की कोशिश की लेकिन फिर भी किसान नेता संतुष्ट नहीं दिखे.

इसके बाद शाम 6 बजे टी ब्रेक लिया गया. 6 बजकर 50 मिनट पर तीसरे राउंड की बातचीत शुरू हुई जो साढ़े 7 बजे खत्म हुई.

ये आंदोलन किस दिशा में जा रहा है?
ये आंदोलन किस दिशा में जा रहा है ये अभी नहीं कहा जा सकता. लेकिन एक नागरिक के तौर पर आप इस आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों और खासकर सिख आंदोलनकारियों के आचरण और वैचारिक ईमानदारी से बहुत कुछ सीख सकते हैं.

किसान अपने हक की बात कहना जानते हैं और सरकार के सामने क्या तर्क रखने हैं. ये भी किसानों को अच्छी तरह पता है. जब किसान नेता सरकार के साथ बातचीत के लिए जा रहे थे, तो रास्ते में ही उन्होंने अपनी तैयारी शुरू कर दी. इस तस्वीर में आप एक किसान नेता को नए कानूनों के बारे में पढ़ते हुए देख सकते हैं.

अपने खाने पीने को लेकर ये किसान कितने स्वाभिमानी हैं. इसकी तस्वीरें हमने आपको दिखाईं. अब आपको ऐसी ही कुछ और तस्वीरें देखनी चाहिए. ये किसान जहां भी आंदोलन कर रहे हैं. उस जगह की साफ सफाई का पूरा ध्यान खुद रख रहे हैं. आंदोलन के दौरान जैसे ही गंदगी फैलती है. युवा किसान उस गंदगी को फौरन साफ करने में जुट जाते हैं. इन किसानों का कहना है कि वो ये नहीं चाहते कि उनके जाने के बाद दिल्ली और आस पास के शहरों के लोग कहें कि इन्होंने उनके शहर को गंदा कर दिया.

नेशनल हाइवे 24 से भी एक तस्वीर सामने आई है. यहां भी किसान आंदोलन कर रहे हैं. ये सड़क भी ब्लॉक है. लेकिन जैसे ही यहां से एक एंबुलेंस गुज़री किसान सड़क से हट गए और एंबुलेंस के गुज़रने के लिए रास्ता बना दिया.

इतना ही नहीं किसान जहां जहां आंदोलन कर रहे हैं उन सभी जगहों पर लंगर के तहत खाने पीने की व्यवस्था की जा रही है, किसान न सिर्फ आंदोलनकारियों के लिए खाना पका रहे हैं, बल्कि रास्ते से गुज़रते लोगों को भी ये खाना दिया जा रहा है. किसान नहीं चाहते कि आंदोलन की वजह से रास्ते से गुजरता हुआ कोई भी व्यक्ति भूखा प्यासा रह जाए.

लेकिन एक सच ये भी है कि जैसे जैसे इस आंदोलन का दायरा बढ़ रहा है वैसे वैसे दिल्ली और आसपास के शहरों के लोगों के लिए परेशानी बढ़ती जा रही है.

आंदोलन का असर पंजाब की अर्थव्यवस्था के साथ देश की सुरक्षा पर भी
किसानों के साथ सरकार की दूसरे राउंड की बातचीत से पहले  देश के गृहमंत्री अमित शाह और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच भी एक मुलाकात हुई. इस मीटिंग के दौरान अमरिंदर सिंह ने सरकार से कहा कि वो इस विवाद का समाधान जल्दी निकालें. लेकिन इस बैठक के बाद अमरिंदर सिंह ने एक बहुत महत्वपूर्ण बयान दिया और कहा कि इस आंदोलन का असर पंजाब की अर्थव्यवस्था के साथ साथ देश की सुरक्षा पर भी पड़ रहा है.

हम ये बात कई दिनों से कह रहे हैं कि इस आंदोलन को कुछ देश विरोधी तत्व हाईजैक करने की कोशिश कर रहे हैं और इसमें खालिस्तानियों की एंट्री हो चुकी है. जब हमने ये कहा तो हमें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया और हम पर किसान विरोधी होने के आरोप लगाए गए, लेकिन आज पंजाब के मुख्यमंत्री खुद कह रहे हैं कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है. खुद कांग्रेस के एक बड़े नेता और मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि इस आंदोलन से देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है. इसलिए आज आपको अमरिंदर सिंह के इस बयान का मतलब समझना चाहिए.

पंजाब एक ऐसा राज्य है, जिसके पड़ोस में पाकिस्तान है. पंजाब और पाकिस्तान के बीच साढ़े 500 किलोमीटर लंबा बॉर्डर है. पंजाब के बहुत करीब होने की वजह से पाकिस्तान इस आंदोलन के बहाने कट्टरवादी ताकतों को भारत के खिलाफ सक्रिय कर सकता है और इस आंदोलन में आतंकवाद की मिलावट भी कर सकता है.

1980 के दशक में पंजाब ने आतंकवाद का काला दौर देखा था. इस दौरान पंजाब में लगातार चरमपंथी और अलगाववादी ताकतों का उदय हो रहा था. ये दौर 1990 तक चला. यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या भी इसी का नतीजा थी. इसलिए अमरिंदर सिंह इस खतरे को अच्छी तरह पहचान रहे हैं.

विदेशों में बसे भारतीयों को भी भड़काया जा रहा
इस आंदोलन के नाम पर विदेशों में बसे भारतीयों को भी भड़काया जा रहा है और इसमें विदेशों से संचालित खालिस्तानी आतंकवादी संगठन बड़ा रोल निभा रहे हैं. ऐसे ही एक संगठन का नाम है Sikh For Justice, जिसने इस आंदोलन में शामिल किसानों को साढ़े सात करोड़ रुपये की मदद देने का ऐलान किया है. ये संगठन खालिस्तान के नाम पर भारत में आतंकवाद फैलाने का काम करता है और इससे जुड़े कई आतंकवादियों की संपत्तियां पिछले दिनों भारत की सुरक्षा एजेंसियां जब्त कर चुकी हैं.

खालिस्तान की मांग करने वाले कई अंतरराष्ट्रीय संगठन अब विदेशों में रहने वाले सिख युवाओं को भड़का रहे हैं और इन्हें पैसे देकर भारत की सरकार के खिलाफ रैलियां आयोजित कराई जा रही हैं. इन्हीं सब बातों की वजह से अमरिंदर सिंह इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता रहे हैं.

अवॉर्ड वापसी गैंग भी सक्रिय
किसान आंदोलन को लेकर अब अवॉर्ड वापसी गैंग भी सक्रिय हो गया है और इस बार इस गैंग में कुछ नए नाम जुड़ गए हैं. इसमें एक बड़ा नाम पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का है जिन्होंने आज किसान आंदोलन के समर्थन में अपना पद्म विभूषण सम्मान वापस करने की घोषणा की है.

प्रकाश सिंह बादल ने इस बारे में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र भी लिखा है. प्रकाश सिंह बादल को वर्ष 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. किसान आंदोलन के समर्थन में 27 खिलाड़ियों ने भी केंद्र सरकार से मिले अवॉर्ड को वापस करने की घोषणा की है.

इन खिलाड़ियों में सबसे बड़ा नाम भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान परगट सिंह का है. वर्ष 1998 में परगट सिंह को पद्मश्री सम्मान दिया गया था.

राष्ट्रपति भवन से मिली जानकारी के मुताबिक राष्ट्रपति सिर्फ़ अवार्ड देते हैं. पद्म पुरस्कारों की प्रक्रिया गृह मंत्रालय तय करता है. इसी तरह खेल पुरस्कारों की प्रक्रिया को खेल मंत्रालय तय करता है.

पद्म पुरस्कारों में कोई राशि नहीं दी जाती है, लेकिन खेल पुरस्कारों में अलग अलग राशि तय होती है जिसे खिलाड़ियों को पुरस्कार के साथ दिया जाता है.

हालांकि अभी तक ऐसा कोई अवसर नहीं आया है जब किसी खिलाड़ी ने पुरस्कार वापसी के नाम पर सम्मान के साथ मिली रकम भी वापस की हो. अब ये खिलाड़ी ऐसा करेंगे या नहीं, इस पर हमारी नज़र रहेगी.

किसान आंदोलन में हैं, तो उनके खेतों को जोतने का काम कौन कर रहा है?
इस समय हज़ारों किसान दिल्ली और आस पास के शहरों में प्रदर्शन कर रहे हैं और इसी समय देश के कई इलाकों के खेतों में अगली फसल बोने की तैयारी भी हो रही है. इसके लिए खेत जोते जा रहे हैं. आप सोच रहे होंगे कि अगर किसान आंदोलन में हैं तो उनके खेतों को जोतने का काम कौन कर रहा है. इसका जवाब ये है कि ये काम किसानों के परिवार कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के मेरठ से लेकर पंजाब के मोगा तक किसानों के घर की महिलाएं इस समय खेतों में काम कर रही हैं. किसान कैसे अपनी पैदावार और परिवार दोनों को बचाने के लिए जी जान से मेहनत कर रहे हैं. इस पर आपको हमने एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है.

घर के पुरुष दिल्ली बॉर्डर पर धऱने पर बैठे हैं तो खेत की जिम्मेदारी घर की महिलाओं ने उठा रखी है. ऐसी ही एक बेटी हैं नीशू चौधरी हैं. नीशू पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही हैं. लेकिन लॉकडाउन में कॉलेज बंद होने के बाद अपने गांव आ गईं. पढ़ाई घर से ही चल रही थी. लेकिन पिता के किसान आंदोलन में जाने के बाद अब खेत की जिम्मेदारी संभाल रहीं हैं.

नीशू के पिता और भाई कृषि कानून के खिलाफ किसान आंदोलन का हिस्सा हैं और इस समय दिल्ली की सीमा पर धरने में शामिल हैं.

नीशू, पिता और भाई की जिम्मेदारी को पूरा करने खेत में उतर गई हैं. गन्ने की फसल काटने का वक्त आ गया है इसलिए नीशू ने इस काम को अपने हाथों में ले लिया है. नीशू को पता है कब कटाई होती है और कब जुताई करनी है, अकेली नीशू ही नहीं, गांव की बाकी औरतें भी यही काम कर रही हैं.

नीशू की तरह मुकेश भी अपने खेत सींचने में जुटी हैं. मुकेश एक किसान की मां और एक किसान की पत्नी भी है. लेकिन जब उनका पूरा कुनबा आंदोलन के लिए खेत छोड़ दिल्ली चला गया तो वो ख़ुद खेत में उतर आईं.

घर पर बेटियां और पत्नी बखूबी निभा रहीं जिम्मेदारी
दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों को भी यकीन है कि वे भले अपने घर में नहीं लेकिन घर पर उनकी बेटियां और पत्नी उनकी गैर मौजूदगी में ये जिम्मेदारी बखूबी अदा कर रही होंगी.

पंजाब के संगरूर के एक गांव में आज सन्नाटा है. गलियों में गिने-चुने लोग ही दिखते हैं. कई घरों के बाहर खाली ट्रैक्टर भी खड़े हैं. किसान नहीं हैं लेकिन घर की महिलाएं चूल्हा-चौका संभालने के साथ ही दिनभर उन सब कामों पर नजर रखती हैं जो घर के पुरुष करते हैं.

जो किसान आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें अपने परिवार की चिंता और याद दोनों सता रही हैं.

किसान सबसे ज्यादा प्यार अपनी पैदावार और परिवार से करता है. पैदावार को बचाने का संकल्प आज किसानों को उनके परिवारों से सैंकड़ों किलोमीटर दूर ले आया है.आज हमने आपको किसानों के परिश्रम, निष्ठा, खुद्दारी और और वैचारिक ईमानदारी की तस्वीरें दिखाईं ये वो गुण हैं जो देश के आम लोगों को किसानों से सीखने चाहिए, हम ये तो नहीं कह सकते कि इन आंदोलनों का नतीजा क्या होगा. लेकिन किसानों से देश के लोग ये नैतिक गुण जरूर सीख सकते हैं.

Bureau Report

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