महिला पहलवानों के मुद्दे पर बजरंग पूनिया ने बड़ा फैसला किया है. उन्होंने अपना पद्मश्री अवॉर्ड लौटा दिया है. बजरंग पूनिया पीएम आवास जा रहे थे लेकिन जब उन्हें पहले ही रोक लिया गया तो वह पद्मश्री को सड़क पर रखकर लौट आए. पूनिया की दलील है कि WFI अध्यक्ष के चुनाव में संजय सिंह के जीतने के बाद फिर से संस्था पर बृजभूषण का कब्जा हो गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि कहां जाएं, क्या करें और कैसे जिएं. इतना मान-सम्मान दिया सरकार ने, लोगों ने. क्या इसी सम्मान के बोझ तले दबकर घुटते रहें. साल 2019 में मुझे पद्मश्री से नवाजा गया. खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. जब ये सम्मान मिले तो मैं बहुत खुश हुआ. लगा था कि जिंदगी सफल हो गई. लेकिन आज उससे कहीं ज्यादा दुखी हूं और ये सम्मान मुझे कचोट रहे हैं. कारण सिर्फ एक ही है, जिस कुश्ती के लिए ये सम्मान मिले उसमें हमारी साथ महिला पहलवानों को अपनी सुरक्षा के लिए कुश्ती तक छोड़नी पड़ रही है. लेकिन सवाल है कि क्या पद्मश्री को लौटा देना, उसे सड़क पर ऐसे रख आना सही है?
बजरंग पूनिया को सम्मान से घिन क्यों?
बजरंग पूनिया ने अपने लेटर में लिखा कि जब किसी कार्यक्रम में जाते थे तो मंच संचालक हमें पद्मश्री, खेलरत्न और अर्जुन अवार्डी पहलवान बताकर हमारा परिचय करवाता था तो लोग बड़े चाव से तालियां पीटते थे. अब कोई ऐसे बुलाएगा तो उन्हें घिन आएगी क्योंकि इतने सम्मान होने के बावजूद एक सम्मानित जीवन जो हर महिला पहलवान जीना चाहती है, उससे उन्हें वंचित कर दिया गया.
क्या देश से भी बड़े हो गए हैं पूनिया?
लेकिन सवाल है कि क्या कोर्ट का निर्णय आने से पहले ही बजरंग पूनिया फैसला कर चुके हैं कि महिला पहलवानों के साथ गलत हुआ. बजरंग पूनिया ने अपनी बात तो कह दी लेकिन उनको पहले तो ये समझना चाहिए कि देश का कानून भारत के हर नागरिक के लिए बराबर है. कानून की नजर में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आरोप किस पर लग रहा है और आरोप लगाने वाला कौन है? कानून कार्रवाई के समय अंतर नहीं करता है कि आरोप लगाने वाला कितनी बड़ी हस्ती है या कितना सम्मानित है. अगर आरोप किसी आम इंसान ने भी लगाया है तो उसके आरोपों की जांच भी उसी तरह से होती है. कानून के मुताबिक, तथाकथित बड़े आदमी को भी उतनी ही सजा मिलती है, जितनी आम इंसान के दोषी होने पर होती है. कानून के लिए सब बराबर हैं. लेकिन दोष जब तक साबित नहीं हो जाएं तब तक किसी को सजा नहीं दी जा सकती है. कोई एक्शन सिर्फ आरोपों के आधार पर नहीं लिया जा सकता. अगर आपका आरोप है कि पुलिस ने साथ नहीं दिया. सरकार के दबाव में है तो कोर्ट में आप लड़ाई लड़ ही रहे हैं. उसके फैसले का आपको इंतजार करना चाहिए.
राजनीति में देश के सम्मान को घसीटना कितना सही?
रही बात बृजभूषण सिंह के खिलाफ सरकार के एक्शन की तो वो राजनीति का मसला है. लेकिन उसमें भारत की तरफ से मिले सम्मान को घसीटना ठीक नहीं है. सरकारें तो बदलती रहती हैं. लेकिन जो सम्मान पद्मश्री, अर्जुन अवॉर्ड और खेलरत्न के रूप में आपको मिला वो भारत देश की तरफ से है. सरकार तो हर 5 साल में चुनी जाती है. लेकिन आपको जो सम्मान मिला है, वह हमेशा इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेगा. आपको भले ही लगता हो कि आपने पद्मश्री लौटाकर सरकार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया है. लेकिन असल में आपने भारत देश की तरफ से दिए गए सम्मान को नकारा है. कोई भी व्यक्ति, नेता, खिलाड़ी या सरकार भारत देश से बड़ा नहीं है. इसलिए देश की तरफ से दिए गए सम्मान को लौटाना ठीक नहीं है. और तो और आपने पद्मश्री को सड़क पर रख दिया. देश के सम्मान पद्मश्री का ऐसा अपमान तो कोई देशवासी स्वीकार नहीं करेगा..
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