क्या इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी मायावती, जानिए क्या है राज्यसभा से उनके इस्तीफे के मायने ?

क्या इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी मायावती, जानिए क्या है राज्यसभा से उनके इस्तीफे के मायने ?नईदिल्लीः बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) अध्यक्ष मायावती के राज्यसभा से इस्तीफे के कई सियासी मायने निकाले जा रहे है.राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीएसपी सुप्रीमो का राज्यसभा से इस्तीफा सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. सियासी पंडित कहते हैं कि मायावती के दलित वोट में एक तरफ बीजेपी सेंध लगा रही है तो दूसरी तरफ पश्चिम में चंद्रशेखर नाम का एक नया दलित नेता खड़ा हो गया है. ऐसे में अपने खिसकते जनाधार को रोकने के लिए मायावती ने एक बड़ा दांव चला है.

खबर है कि यूपी की पूर्व सीएम और देश में दलितों की सबसे बड़ी नेता अब लोकसभा चुनाव लड़ सकती हैं. खबर है कि मायावती फूलपुर से चुनाव लड़ सकती हैं. इन कयासों को हवा मिलना इसलिए भी लाजमी है क्योंकि फूलपुर सीट पर उपचुनाव होने है. इस सीट से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सांसद है.

डिप्टी सीएम बनने के बाद उन्हें विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता लेनी होगी और सांसद के पद से इस्तीफा देना होगा. ऐसे में यह सीट खाली हो जाएगी. इस लिहाज से होने वाले उपचुनाव में वह अपनी किस्‍मत आजमा सकती हैं.

फूलपुर लोकसभा सीट बीएसपी के लिए क्यों है खास 

साल 1996 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी के संस्‍थापक कांशीराम ने यहां से चुनाव लड़ा था. उस दौरान उन्हें 1,46,832 वोट मिले थे. वहीं समाजवादी पार्टी के जंग बहादुर पटेल को 1,62,844 वोट मिले थे. जंग बहादुर ने 16 हजार से ज्यादा वोटों से कांशीराम हरा दिया था. यह सीट बीएसपी के लिए इसलिए भी अहम है क्‍योंकि इस सीट पर दलितों, अल्‍पसंख्‍यकों और ओबीसी तबके के वोट का बड़ा आधार है.

महागठबंधन की प्रत्याशी हो सकती हैं मायावती

इस बात की भी चर्चा चल रही है कि अगर वह चुनाव लड़ने का फैसला करती हैं तो वह महागठबंधन की साझा उम्‍मीदवार भी हो सकती हैं. दरअसल माना जा रहा है कि सपा, बसपा और कांग्रेस मिलकर इस सीट से लोकसभा उपचुनाव लड़ सकते हैं. इसे 2019 के चुनावों की पृष्‍ठभूमि में महागठबंधन की तैयारी के रूप में भी माना जा सकता है.

माया ऐसा इसलिए कर सकती हैं. क्योंकि भारतीय राजनीति में वो पहले से कमज़ोर हुई है. उनके पास लोकसभा में कोई सांसद नहीं है. राज्यसभा में सिर्फ़ 6 हैं और यूपी विधानसभा के इस चुनाव में उनकी पार्टी के सिर्फ़ 19 विधायक हैं. कमज़ोर पड़ी ताक़त उन्हें गैर बीजेपी गठबंधन का हिस्सा बना सकती है.

खिसक रहे जनाधार को गठबंधन से बटोरने की कोशिश

यूपी में बीएसपी के कई बड़े नेताओं का बीजेपी में शामिल होना. दलित वोटों के खिसकने के साथ-साथ, मुस्लिम समाज का सपा-कांग्रेस में जाना और पिछड़े वर्ग में आने वाले मौर्य, शाक्य और कुशवाह वोटरों का बीजेपी में की तरफ रुख करना मायावती के लिए बड़ी चिंता कारण रहा है.

यही कारण रहा कि पार्टी के लोकसभा चुनावों में मुंह की खानी पड़ी. ऐसे में अब माया किसी भी तरह से मुस्लिम, पिछड़ा और दलित वोटों को बंटने नहीं देना चाहती और उनके लिए लोकसभा चुनाव लड़कर संसद में जाना उनकी पार्टी की मजबूती और बीजेपी को यूपी में कमजोर करने की तरफ एक बड़ा कदम हो सकता है.

Bureau Report

 

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